1100 साल से भी ज़्यादा पुराना कंबोडिया का यह विशाल हिन्दू मन्दिर अंकोरवाट, जानिए क्यों है खास

हिन्दू धर्म में यह मान्यता है कि ईश्वर तो कण-कण में है, ईश्वर सर्व शक्ति और सर्व विराजमान है, परंतु ईश्वर के प्रारूप के दर्शन मंदिरों में ही किए जाते हैं। ईश्वर की प्रतिमा को विराजमान होने के बाद मंदिर एक शांति में और सुकून प्रदान करने वाला स्थान हो जाता है और यही कारण है कि मंदिरों के प्रति लोगों का आकर्षण दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। एक ऐसा ही शांति और सुकून प्रदान करने वाला आकर्षण मंदिर कंबोडिया में स्थित अंकोरवाट मंदिर है।यह विडंबना है कि यह बेहतरीन, शानदार, अद्भुत लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने वाले मंदिर हिन्दुस्तान में नहीं है। अंकोरवाट मंदिर सिमरिप शहर में मीकांग नदी के किनारे स्थित है।यह मन्दिर बहुत ही भव्य और विशाल है और मेरु पर्वत का प्रतीक है। इस मन्दिर पर हिन्दू और बौद्ध धर्म के अनुयायी अपनी आस्था रखते है और यह मन्दिर लगभग 162.6 हेक्टेयर के ऐरिया में फैला है।

अंकोरवाट मन्दिर का इतिहास

अंकोरवाट मन्दिर एक बौद्ध मंदिर है। यह मन्दिर कंबोडिया के अंकोर में स्थित है, इसका पुराना नाम  'यशोधरपुर' था। वहीं कंबोडिया का प्राचीन नाम 'कंबुज' था और खमेर साम्राज्य का राज्य था। खमेर साम्राज्य की राजधानी अंकोर महानगर थी, जहां वर्ष 1010 से 1220 मध्य बड़ी संख्या में लोग रहा करते थे। इसी क्षेत्र में करीबन 1000 से ज्यादा छोटे-बड़े मंदिर है, जिसमें से कई मन्दिरों को दोबारा बनाया गया था और इन्ही में से एक मन्दिर अंकोरवाट था।इस मन्दिर का निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय के शासनकाल में हुआ था।

अंकोरवाट मंदिर से जुड़ी कुछ अनोखी और महत्वपूर्ण बातें

1)अंकोरवाट मंदिर बहुत ही विशाल और भव्य मंदिर है।

2)अंकोरवाट मंदिर के शिलाचित्रों को रामकथा बहुत संक्षिप्त रूप में दर्शाया गया है।

3)शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की माने तो अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कंबोडिया के अंकोरवाट मंदिर के अनुसार पर ही होना चाहिए।

4)अंकोरवाट मंदिर के शिलाचित्रों में रावण वध से शुरुआत हुई है और इसके बाद सीता स्वयंवर का दृश्य मिलता है। इन्हीं दोनो प्रमुख घटनाओं का अंकोरवाट मंदिर के शिलाचित्रों में वर्णन है।

5) इसके अलावा भगवान श्री राम जी स्वर्ण मृग के पीछे दौड़ते हुए, सुग्रीव और श्रीराम की मैत्री, बाली और सुग्रीव का युद्ध, अशोक वाटिका और हनुमान, राम और रावण युद्ध, सीता माँ की अग्नि परीक्षा, राम की अयोध्या वापस आना आदि दृश्य भी इस शिलाचित्रो में वर्णित है। 

6) यह अंकोरवाट मन्दिर ऊंचे से स्थान (चबूतरे) पर स्थित है जिसमें तीन खण्ड है और प्रत्येक खंड में 8 गुम्बज है।

7) यह मन्दिर लगभग 2 किलोमीटर के ऐरिया में फैला हुआ है और इस मन्दिर के पीछे दीवार के बाद ही यहाँ लगभग 700 फुट चौड़ी खाई है, जिस पर 36 फुट चौड़ा पुल का निर्माण किया गया है।

8)यह स्थान बहुत ही रोमांचक और इतिहास के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण भी है जिसे विश्व के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थानों में से माना गया है।

9)इस मन्दिर को भगवान विष्णु के एक हिंदू मंदिर के रूप में बनाया गया था, जो समय के साथ ही 12 वीं शताब्दी के खत्म होते होते ही बौद्ध मंदिर में बदल गया।

10)साल 1986 -1993 तक इस मन्दिर को पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा सम्भाला जा रहा था।

11) फ्रांस से आजादी के बाद ही इस मंदिर को कंबोडिया देश को पूर्णत सौंप दिया गया।

12) यह मन्दिर कंबोडिया के अंकोर में स्थित है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि यह मन्दिर कई वर्षो से गुमनाम रह था। 19वीं शताब्दी के बीच में ही एक फ्रांसीसी इतिहास में रूचि रखने वाले हेनरी महोत के वज़ह से इस मंदिर को फिर से अस्तित्व मिला था।

विशेषताएं जो अंकोरवाट मंदिर को अन्य मन्दिरों से अलग करती है

1) अंकोरवाट मन्दिर का मंदिर का प्रवेश एवं मुख्य द्वार अन्य हिन्दू मन्दिरों के प्रवेश और मुख्य द्वार से भिन्न पश्चिम दिशा में स्थित है। जबकि अन्य मन्दिरों का मुख्य और प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में ही रहता है।

2)इस मन्दिर में ढलते सूर्य की रोशनी मन्दिर की सुंदरता और भव्यता को कई गुना तक बढ़ा देती है और ऐसा प्रतीत होता है कि यह मंदिर अपनी भव्यता और सुन्दरता के साथ ही सूर्यदेव को सूर्यास्त के समय अपने दोनों हाथों को जोड़े स्नेह से नमन कर रहा हो।

3)इस मंदिर की दीवारों पर अनेकों सुन्दर और मनमोहक धार्मिक तथा पौराणिक कहानियों को चित्रों के माध्यम से उकेरा गया है, इसी वज़ह से यह मन्दिर अन्य मन्दिरों से भिन्न और अति आकर्षक है।

4) इस मंदिर को मेरू पर्वत के अनुसार ही रूपान्तरीत और निर्मित किया गया है और हिंदू धर्म में मेरू पर्वत की बड़ी मान्यता है। ऐसा माना जाता कि मेरू पर्वत में सृष्टि रचयिता भगवान श्री ब्रह्मा सहित अनेकों देवताओं का निवास है, जो इस मंदिर को और भी ख़ास और दूसरे मंदिरों से अलग बनाता है।

5) इस मंदिर को हिंदू और बौद्ध दोनों धर्म के लोग अपना धार्मिक स्थल मानते है, इसी वज़ह से यह मंदिर और भी खास और महत्वपूर्ण बन जाता है। 

अंकोरवाट मन्दिर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

1) 2019 में इस मंदिर में 22 लाख से भी ज़्यादा पर्यटक आए थे।

2)इंडोनेशिया के लोगों में यह मंदिर पानी में डूबा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। 

3)कंबोडिया के राष्ट्रीय ध्वज में अंकोरवाट मंदिर को प्रमुख स्थान दिया गया है।

4)अंकोरवाट मंदिर की दीवारों पर कई मनमोहक और सुन्दर अप्सराओं के भी चित्रों को दर्शाया गया है, जो इस मन्दिर को बेहद खास और आकर्षक बना देता है।

5) इस मंदिर में समुद्र मंथन के भी मनमोहक और सुन्दर दृश्य बनाये गये है।

कंबोडिया के इस खुबसूरत, मनमोहक और दुनिया के सबसे बड़े हिन्दू मंदिर, अंकोरवाट मंदिर कैसे पहुंचे

सबसे पहले कंबोडिया जाने के लिए आपको दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बेंगलुरु से सीधी फ्लाइट मिल जाएंगी। लेकिन वीजा के बारे में बात करें तो यहां ऑन अराइवल वीजा मिल जाता है, इसलिए वीजा की कोई भी परेशानी नहीं रहती है। इसके अलावा भी पर्यटक ई- वीजा भी ले सकते है। भारत से होकर कंबोडिया जाने वाली फ्लाइट्स फनोम पेन्ह इंटरनेशनल एयरपोर्ट और सीएम रेअप इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर लैंड होती है और इन एयरपोर्ट से अंगकोरवाट तक का सफर तय करने के लिए आपको कई बसें और कैब आसानी से मिलती है।