जानिए 7 अद्भुत जगहों के बारे में जिसके बारे में पढ़ते ही आपके शरीर के रोंगटे खड़े हो जाएंगे

भारत विलक्षण प्रतिभा का धनी देश है। यहां अनसुनी, अविश्वसनीय, अकल्पनीय चीजें लगातार सामने देखने को मिलती हैं। अमूमन इन चीजों की जानकारी मिलने के बाद आम लोग हैरत में पड़ जाते हैं और उनके मस्तिष्क में बस एक ही प्रश्न उठता है कि क्या यह सच है। आज भी भारत में कई ऐसी रहस्यमयी घटनाएं हैं जो विज्ञान को भी पछाड़ने में कामयाब रही हैं। शोधकर्ताओं के पैरों तले जमीन खिसक जाती है जब अविश्वसनीय घटनाएं उनको शोध करने को मिलती हैं। आइए जानते हैं ऐसे कुछ अनसुने अविश्वसनीय अकल्पनीय घटनाओं के बारे में जिनके सत्य होने का प्रमाण आज भी विज्ञान तलाश कर रहा है।


येती फुट प्रिंट्स
अनसुनी आश्चर्यजनक घटनाओं में से एक है हिम मानव के पैरों के प्राचीन निशान। आज भी इन चीजों के पुख्ता सबूत नहीं है लेकिन कुछ लोग इसे देखने का दावा जरूर करते हैं। लोगों की मान्यता के अनुसार यहां पहले ही मानव निवास करते थे परन्तु वर्तमान समय में इसकी जानकारी भारतीय सेना के ट्विटर हैंडल से मिली। जिसमें एक तस्वीर साझा की गई और उस तस्वीर में हिम मानव का पग चिन्ह दिख रहा था। ये घटना 9 अप्रैल 2019 को आर्मी सेना के ट्विटर हैंडल से तस्वीर साझा करते हुए दी गई। सेना के एक पर्वतारोहण दल ने भारत नेपाल के बॉर्डर की ये तस्वीरें मिलने की जानकारी दी।


जुड़वा बच्चे
भारत के दो ऐसे राज्य हैं जिन राज्यों में सन 1947 के बाद से लगातार जुड़वा बच्चों के पहले पैदा होने की खबर मिलती रहती है। उत्तर प्रदेश राज्य के इलाहाबाद जिले के उमरी गांव में लगातार जुडवा बच्चे होने की खबरें आती रहती हैं साथ ही केरल के मल्लपुरम के गांव कोडनी से से ऐसी खबरें देखने को मिल जाती हैं। एक आंकड़े के अनुसार मल्लापुरम में पच्चीस सौ परिवार हैं जिनमें से 1.5 दर्जन जुड़वा बच्चों की संख्या है। वहीं यूपी के 2000 परिवारों में जुड़वा बच्चों की संख्या 350 है। चिकित्सक अक्सर इसे अनुवांशिकी कारण बताते हैं तथा जांच एजेंसियों द्वारा कई बार लार और खून भी इन गांवों से एकत्रित किए गए हैं। हैरत की बात यह है एक हजार पैदा होने वाले बच्चों के मात्र छह बच्चे जुड़वा पैदा होते हैं परंतु इन गांवों में ये संख्या एक हजार प्रति बच्चे पर 45 जुड़वा बच्चों की संख्या है यानी पूरे दुनिया में 7.5% ज्यादा।


कोंगका दर्रा
कोंगका दर्रा जम्मू कश्मीर के लद्दाख का एक बर्फीला और दुर्गम मार्ग है और यही कारण है कि यहां की जानकारियां कम मिल पाती हैं। अक्सर एलियन और भूत प्रेतों की कहानियां पढ़ने और सुनने को मिलती हैं परन्तु यहां के स्थानीय लोगों का दावा है कि यहाँ एलियन निवास करते हैं और कुछ प्राचीन बुजुर्ग इसे अंतरिक्ष जीवों का गुप्त स्थल भी कहते हैं उनका मानना है कि यहां UFO का दिखाई देना एक साधारण आम बात है। ये बात तब निकल कर सामने आई जब जून 2006 गूगल द्वारा सैटेलाइट से ली गई तस्वीर में एक एलियन नजर आया, तथा माना जाता है कि भू वैज्ञानिकों के एक दल ने सन 2004 में मानव आकृति का चार फुट लंबा एक रोबोट निकटता से देखा जो धरती का विचरण करते-करते आसमान में खो गया।


कृष्णा बटर बॉल
तमिलनाडु के महाबलीपुरम में स्थित कृष्णा बटर बॉल को बैलेंसिंग चट्टान के भी नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि बारह सौ वर्ष पुरानी एक चट्टान किसी ढलान पर रुकी हुई है। दूर दराज से सैलानी इस अद्भुत नजारे और विलक्षण दृश्य को देखने के लिए आते हैं। 250 टन का ये पत्थर देखने में ऐसा प्रतीत होता है कि अब ये लुढ़क कर नीचे आ जाएगा परंतु बारह सौ साल से लोगों की इस जिज्ञासा पर ये बैलेंसिंग चट्टान पानी फेर दे रहा है। सन् 1908 में इस पत्थर पर मद्रास गवर्नर आर्थर की नजर पड़ी तो उन्होंने इसे हटाने के लिए सात हाथियों को लगाया था। मगर बलशाली हाथी भी इस काम में फेल हो गए थे। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह पत्थर मक्खन की गेंद है, इसे श्रीकृष्ण ने अपनी बाल्य अवस्था में नीचे गिरा दिया था तब से ये इसी जगह पर टिकी हुई है। बताया जाता है कि इस बटर बॉल को जिस किसी ने भी हटाने की कोशिश की है उसके साथ कुछ न कुछ अपशगुन हुए हैं। लोग बटर बॉल को देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं और वे इसके साथ तस्वीरें खिंचवाते हैं।


मैग्नेटिक हिल
वर्तमान के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में स्थित यह एक ऐसा मैग्नेटिक हिल है जहाँ आप अपने कार को न्यूट्रल गियर में कर के छोड़ दें फिर भी कार 20 किलोमीटर की रफ्तार से चलती रहेगी। माना जाता है कि इस पहाड़ी में कोई चुम्बकीय बल है जो वस्तुओं को अपनी ओर तेज गति से आकर्षित करने की क्षमता रखता है। यहां से हवाई उड़ान से जाने वाले प्लेन भी अपने उड़ान ऊंचे कर लेते हैं ताकि इस चुम्बक की आकर्षण के गिरफ्त में न आ सकें। गाइड के अनुसार इसे सुपर नेचुरल घटना कही जाती है। यह साधारण लोगों के लिए एक अविश्वसनीय घटना जैसी है। स्थानीय लोग इसे हिमालय की सुंदरता कहते हैं।


लौह स्तम्भ
दिल्ली में कुतुबमीनार परिसर में एक लौह स्तम्भ है जो लोहे से निर्मित होने के बावजूद उसमें आज तक कोई जंग नहीं लगा है। 1600 साल पुराना यह स्तम्भ 98 प्रतिशत लोहे से बना हुआ है, लेकिन इसके बावजूद इसमें जंग नहीं लगा है। अपने पिता चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की याद में उनके बेटे कुमारगुप्त ने इसे बनवाया था। इसकी ऊंचाई 7.21 मीटर है और यह जमीन में 3 फुट 8 इंच नीचे गड़ा है। इसका वजन 6000 किलो से अधिक है। अब यह धातु इतिहासकारों के एक चुनौती से कम नहीं है क्योंकि लोहे के स्तम्भ में इतने सालों के बाद भी जंग न लगना किसी रहस्य से कम नहीं है।


साल 1998 में इसका खुलासा करने के लिए IIT कानपुर के प्रोफेसर डॉ. आर. सुब्रह्मण्यम ने एक प्रयोग किया। रिसर्च के दौरान उन्होंने पाया कि इसे बनाते समय पिघले हुए कच्चे लोहे (Pig Iron) में फास्फोरस (Phosphorous) को मिलाया गया था। यही वजह है कि इसमें आज तक जंग नहीं लग पाया है।अब दुनिया यह मानती है कि फास्फोरस का पता हेन्निंग ब्रांड ने सन 1669 में लगाया था, लेकिन इसका निर्माण तो 1600 में किया गया था यानि कि हमारे पूर्वजों को पहले से ही इसके बारे में पता था। इससे एक बात तो साफ है कि प्राचीन काल में भी हमारे देश में धातु-विज्ञान का ज्ञान उच्चकोटि का था।


जोधपुर धमाका
18 दिसंबर 2012 के दिन एक ऐसा धमाका सुनने को मिला जिसको याद करते ही आज भी लोगों के जेहन के रोमिटा खड़े हो जाते हैं। 18 दिसंबर को 11:25  मिनट पर एक सोनिक बूम हुआ। इस बूम की आवाज इतनी तेज थी कि कुछ सेकंड अगर ये आवाज और रुक जाती तो जोधपुर के सम्पूर्ण कांच के सी से टूट की जमीन पर बिखर जाते। स्थानीय लोगों के जेहन में आज भी यह घटना एक खौफनाक और डर का माहौल पैदा करती है। इस तेज धमाके की गूंज लगातार फैल रहे अफवाह की 31 दिसंबर 2012 को दुनिया खत्म होने वाली है की ओर आकर्षित करती थी। कुछ था तथाकथित जानकारों का मानना था कि ये एक हवाई परीक्षण है परंतु अपनी सफाई देते हुए वायुसेना ने बताया कि यह वायु सेना का किसी भी प्रकार का परीक्षण नहीं था।