देवी दुर्गा का निवास स्थल माना जाता है उत्तर प्रदेश का यह शहर

पवित्र गंगा के तट पर स्थित, विंध्याचल भारत में एक प्रमुख शक्ति पीठ है। विंध्याचल, वाराणसी से 76 किमी की दूरी पर स्थित है और एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थस्थल है। शास्त्रों के अनुसार, इसे देवी दुर्गा का निवास माना जाता है। किंवदंती है कि देवी ने महिषासुर राक्षस का वध करने के बाद विंध्याचल को अपने निवास स्थान के रूप में चुना था। विंध्याचल में अनेक मंदिर हैं, जहाँ सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है। शहर में भक्त त्रिकोण परिक्रमा करने के लिए आते हैं, जिसमें तीन सबसे महत्वपूर्ण मंदिर विंध्यवासिनी, अष्टभुजा और काली खोह मंदिर शामिल हैं। यहां साल भर तीर्थयात्रियों की भारी भीड़ रहती है और विशेष रूप से नवरात्र के दौरान पूरे शहर को दीयों और फूलों से सजाया जाता है। अगर आप भी विंध्याचल घूमने जा रहे हैं तो इन जगहों पर जरूर जाएं - 

विंध्यवासिनी मंदिर 
मां काली के शक्तिपीठ तीर्थयात्रा के लिए सबसे महत्वपूर्ण धामों में से एक होने के कारण विंध्याचल में यह प्रमुख आकर्षण है। यह मंदिर मिर्जापुर जिले से 8 किमी की दूरी पर स्थित है और यहां साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है। इस मंदिर में माँ काली की मूर्ति है, जिनकी पूजा काजला देवी के रूप में की जाती है। यह मंदिर एक छोटे से पहाड़ी क्षेत्र पर स्थित है और यहां तक ​​जाने वाली सड़क बेहद खड़ी है। मंदिर में मुख्य मूर्ति माँ काली की है और इसके साथ-साथ अन्य देवी-देवताओं की भी मूर्तियाँ हैं। मंदिर में दर्शन करने आए यहाँ गंगा नदी में पवित्र स्नान भी कर सकते हैं। नवरत्रि के दौरान मंदिर में हजारों की संख्या में भक्त आते हैं।

अष्टभुजा मंदिर 
यह मंदिर विंध्याचल पर्वत की चोटी पर स्थित है और विंध्याचल धाम का एक मुख्य मंदिर है। यह मंदिर यशोदा की पुत्री अष्टभुजा को समर्पित है और इस मंदिर के निर्माण को लेकर एक प्रचलित कथा  था। ऐसा कहा जाता है कि मथुरा के राजा कंस से खुद को मुक्त करने के बाद, अष्टभुजा भाग गई और विंध्याचल पर्वत की चोटी पर आश्रय पाया जहां आज यह मंदिर स्थित है। 

काली खोह मंदिर
काली खोह मंदिर, देवी काली को समर्पित है और एक गुफा के रूप में है। माना जाता है कि देवी काली ने राक्षस रक्तबीज को मारने के लिए अवतार लिया था। रक्तबीज को वरदान था कि उसके खून की हर बूंद तुरंत एक और रक्तबीज को जन्म देगी। इससे दानव को मारना बेहद मुश्किल हो गया। ऐसा माना जाता है कि रक्तबीज को खत्म करने के लिए मां काली ने अपनी जीभ को पूरी जमीन पर फैला दिया और रक्तबीज का सारा खून चाट लिया।

सीता कुंड 
सीता कुंड, विंध्याचल में मुंगेर में विद्या कुंड और मणि पर्वत के पास एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है। मान्यताओं के अनुसार इसकी उत्पत्ति रामायण के समय की है। कहा जाता है कि जब भगवान राम, सीता और लक्ष्मण लंका में अपनी जीत के बाद लौट रहे थे तो सीता जी को प्यास लगी। पास में पानी न होने के कारण लक्ष्मण जी ने एक बाण को पृथ्वी पर मार कर पानी की एक धारा उतपन्न की। माता सीता से जुड़े होने के कारण यह स्थानीय लोगों और पर्यटकों दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। सीता कुंड तक पहुँचने के लिए आपको 48 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। भगवान हनुमान, राम-जानकी और दुर्गा देवी को समर्पित तीन अन्य मंदिर पास में एक पहाड़ी पर स्थित हैं। चौरासी परिक्रमा, श्रावण और राम नवमी त्योहारों के उत्सव के दौरान भक्त बड़ी संख्या में मंदिर में आते हैं।

रामेश्वर महादेव मंदिर 
विंध्याचल के दो सबसे प्रमुख मंदिरों - विंध्यवासिनी और अष्टभुजा मंदिर के बीच स्थित यह मंदिर, यहाँ के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। मिर्जापुर से 8 किमी की दूरी पर स्थित, यह मंदिर भगवान शिवजी को समर्पित है। भगवान शिव को मंदिर के गर्भगृह के केंद्र में स्थित एक बड़े शिवलिंग द्वारा दर्शाया गया है। यह त्रिकोण का तीसरा स्तंभ या विंध्याचल का महान त्रिभुज मंदिर तीर्थ भी है। मंदिर का नाम श्राद्ध पूजा अनुष्ठान से मिलता है जो यहां राम जी ने अपने पूर्वजों की शांति के लिए शिवजी पर किया था।