प्रतिदिन ताजगी व स्फूर्ति के लिए उपयोग की जाने वाली चाय का जानिए क्या है इतिहास

चाय एक ऐसा पेय पदार्थ जिसकी चुस्कियों से हिंदुस्तान के लोगों के दिन कि शुरुआत होती है। चाय के जादुई आकर्षण पर हर व्यक्ति घायल है। चाहे दिन की शुरुआत वाली दो कप चाय, या दोपहर में मिलने वाली दफ्तर की चाय, या शाम के पड़ोसियों की चाय, बच्चे, युवा, किशोर, वृद्ध चाय के सब दीवाने हैं।
 
चाय को भारत के अलग अलग राज्यों में अलग अलग नाम से जाना जाता है बांग्ला में चा, गुजराती में चा, मराठी में चाहा, असम में सा, कन्नड़ में चाहा मलयालम में चाया उड़िया में चा नाम भले ही अलग हो परंतु चाय के दीवाने हर हिंदुस्तानी है। दूध वाली चाय के अलावा ग्रीन टी ब्लैक टी हर्बल चाय लोगों की पसंदीदा बनी हुई है।
 
चाय पीने से  फायदे भी होते हैं चाय बुढ़ापे की रफ्तार को भी कम करती है और शरीर को उम्र के साथ होने वाले नुकसान से बचाती है। चाय में मौजूद फ्लोराइड हड्डियों को मजबूत करता है और दांतों में कीड़ा लगने से भी रोकता है।चाय, तनाव, थकान,निद्रा को दूर करता है। चाय की चुस्कियों का शौकीन पूरा हिंदुस्तान है। कई कवियों ने तो चाय पर कविताएं भी लिख चुके हैं। क्या आपको पता है चाय के इतिहास की कहानी क्या है? चाय के शौकीन क्या ये जानते हैं कि चाय की यात्रा की शुरुआत कहाँ से हुई हम आपको बताते हैं। 
 
चाय का इतिहास 
चाय का इतिहास 750 ईसा पूर्व से है। आम तौर पर चाय की खेती भारत में नीलगिरी की पहाड़ियों और उत्तर पूर्वी भागों की जाती है। आज भारत दुनिया में चाय का सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत में चाय का इतिहास 2000 वर्ष पहले का है। इसका इतिहास एक बौद्ध भिक्षु से जुड़ा है।बौद्ध धर्म के संस्थापक भिक्षु जेन सात साल की नींद त्याग कर जीवन के सत्य को जानने और बुद्ध की शिक्षाओं पर विचार करने का फैसला किया जब चिंतन का पांचवें साल था तो उन्होंने बुश के कुछ पत्ते लिए और उन्हें चबाना शुरू कर दिया। माना जाता है कि इन्हीं पत्तियों ने उन्हें पुनर्जीवित और जागते रहने के लिए सक्षम बनाया था। माना जाता है कि जब भी उन्हें नींद महसूस होती तो वो बुश के पत्तों को चबाना शुरू कर देते थे और यह प्रक्रिया बार बार वो दोहराते रहे इस तरह सात साल के लिए वो अपनी तपस्या को पूरा करने में सक्षम रहे। हैरत की बात यह है जो कुछ दिनों बाद सामने आई कि जिन पत्तियों को वो चबा कर इतने दिनों तक बिना निद्रा के जीवित रहे वो पत्तियां कुछ और नहीं बल्कि जंगली चाय के पौधे की पत्तियां थी। यहीं से चाय का सफर शुरू हुआ तभी से भारत के लोगों ने निद्रा और थकान दूर करने के लिए जंगली चाय की पत्तियां चबाना शुरू कर दिया।
 
भारत में चाय का उत्पादन 
भारत में चाय का उत्पादन उत्तर पूर्वी भागों में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने शुरू किया। इसी दौर से चाय की खेती लगातार शुरू कर दी गई। 19 वीं सदी के अंत में असम में चाय की खेती का पदभार संभालने के बाद पहला चाय का बागान भी ब्रिटिस इस्ट इंडिया कंपनी द्वारा ही शुरू किया गया था। भारत में चाय का उपयोग तेजी से बढ़ने लगा लोग अलग अलग विधि से इसका उपभोग करने लगे। 16 वीं सदी में यह भी देखा गया कि भारत के लोग चाय का उपयोग अनेकों विधि से करने लगे जैसे लहसुन तेल और चाय की पत्तियों को मिलाकर उसका सेवन करना या उबली हुई पत्तियों का एक पेय तैयार किया जाने लगा और इसका इस्तेमाल जोरों शोरों से लोगों में बढ़ता गया दिन प्रतिदिन लोग इसके शौकीन होते गए।
 
ईस्ट इंडिया कंपनी के एक कर्मचारी रॉबर्ट्स ब्रूस और उनके भाई चार्ल्स ने इस बात की पुष्टि की, की चाय का पौधा वास्तव में असम क्षेत्र के भाग में पैदा हुआ था। उसके बाद कोलकाता में स्थित बोटेनिकल गार्डन के अधिकारियों को चाय के बीज और पौधे का नमूना भेजा गया परंतु ईस्ट इंडिया कंपनी के पास चीन के साथ चाय का व्यापार करने का अधिकार था और यही कारण था कि चाय उगाने की प्रक्रिया को शुरू नहीं किया गया। परन्तु कुछ दिनों बाद जब कंपनी ने अपने अधिकार खो दिए फिर एक समिति का गठन किया गया जिसमें चार्लस ब्रूस को चाय की पैदावार को बढ़ाने का काम दिया गया।19 वीं सदी में एक अंग्रेज ने यह गौर किया कि असम के लोग एक काला तरल पदार्थ पीते हैं। जो एक स्थानीय जंगली पौधे से पीसकर बनाया जाता है। और यहीं से चाय के प्रचलित होने की शुरुआत हुई और यह हर व्यक्ति का पसंदीदा बनता गया।
 
चाय के प्रसिद्ध स्थान 
 
दार्जिलिंग
दार्जिलिंग चाय के लिए मशहूर है। यहां के पहाड़ियों पर चाय की खेती का नजारा बिलकुल हरा भरा और प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण है। यहां से चाय अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत उच्च कीमतों पर बेची जाती है। सन 1841 से यहां चीनी किस्मों के चाय के पौधे उगाए जा रहा है। इसके मुस्केटल स्वाद के कारण कहीं और उत्पादन नहीं किया जाता है।
 
असम
असम एक ऐसा क्षेत्र है जहां चाय समतल भूमि पर उगाई जाती है।असम चाय के विशेष स्वाद के लिए विश्व में पूरे में मशहूर है। असम में सबसे बड़ा चाय का अनुसंधान केंद्र है यह जोरहाट के टोकलाई पर स्थित है इसे अनुसंधान एसोसिएशन द्वारा प्रबंधित किया जाता है। असम चाय के विशिष्ट स्वाद और लीकर के लिए प्रसिद्ध है।
 
नीलगिरि 
नीलगिरि चाय के लिए प्रसिद्ध स्थानों में एक है। यहां के पर्वतों को सक्के नीले कुरिंजी फूल से इसका नाम मिला। यहां चाय में साधारण खुशबू के साथ साथ उत्तम स्वाद भी होता है। इसके भभके से खींचकर निकाला जाने वाला नशीला रस पीले रंग का होता है। जो मुह में मलाईदार स्वाद प्रदान करता है। यहां गोधूली बेला में फूलों की महक होती है जो नीलगिरि को बेहद ही खास बनाती है।
 
कांगड़ा 
हिमाचल प्रदेश का यह जिला चाय के लिए खूब प्रसिद्ध है।
1829 में डॉ.जेमेसन द्वारा यहां पर चाय उगाई गई थी इसी कारण से यह जिला चाय के लिए  प्रसिद्ध स्थानों में गिना जाता है। मूल रूप से यह क्षेत्र हरी चाय और काली चाय के लिए प्रसिद्द है।
 
कर्नाटक 
चाय के मशहूर स्थानों में कर्नाटक का नाम भी शामिल है। यहां चाय के बागान सह्याद्री रेंज के बाबा बूदन के पहाड़ियों में चिकमंगलूर के आसपास स्थित है। यहां की चाय की सबसे अच्छी खासियत यह है कि यहाँ सरल और संतुलित गुण की चाय पैदा होती है। इस विशेषता के कारण इसका उपभोग आप एक दिन में कई बार कर सकते हैं।
 
वायनाड 
केरल का वायनाड जिला चाय की खेती के लिए  मशहूर है। यहां की चाय अपनी साफ खुशबू के लिए जानी जाती है।यहां चाय के पौधे मिट्टी के रंग की लाल शराब का उत्पादन करते हैं। सन 1874 में  ओच्तेलोर्नि घाटी में एक नई आशा में पहला चाय बागान स्थापित किया गया।
 
चाय के विभिन्न प्रकार 
 
ग्रीन टी 
अमूमन चाय की पत्तियों को चुनकर उसे सुखाया जाता है। परन्तु हरी चाय निर्मित करने के लिए  चाय के पत्तियो को आक्सीडाइज नहीं होने दिया जाता उन्हें जल्द ही सुखा कर और बचा कर रख लिया जाता है।ग्रीन टी के का उपभोग करने से ।कैंसर हृदय रोग से बचा जा सकता है।
 
काली चाय 
यह चाय तेज और कड़क चाय होती है। दुनिया में इसकी सबसे अधिकतम बिक्री होती है। शादी काली चाय पीने से एंटी ऑक्सीडेंट बनता है और यह हिन्दी हृदय रोगों को कम करने के लिए फायदेमंद है।
 
सफेद चाय 
सफेद चाय कम से कम प्रसंस्करण से होकर गुजरती है। यह चाय जायके में हल्की होती है और इसमें कम कैफीन और अधिक एंटीऑक्सीडेंट के गुण होते हैं।