आस्था का केंद्र और देवनगरी के नाम से विख्यात रुद्रप्रयाग, आकर्षक नदियों और मंदिरो के लिए प्रचलित है

देवनगरी और आस्था के प्रतीक स्थानों को घूमना श्रद्धा और भक्ति के भाव को तरोताजा कर देता है। आस्था की मिट्टी में सना हुआ एक ऐसा स्थान है, यहां के आकर्षण से लोगों को एक अनोखी शांति महसूस होती है। रुद्रप्रयाग भारत के उत्तराखंड राज्य का एक जिला है। यह प्रसिद्ध स्थान मंदाकिनी और अलकनंदा नदियों के संगम का अनोखा क्षेत्र है। 

अलकनंदा नदी इसी स्थान से देवप्रयाग में भागीरथी नदी से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती हैं। यहाँ मंदिरों के सुन्दर आकर्षण के साथ साथ नदियों का भी अवलोकन किया जा सकता है।
 
सबसे खास बात यह है कि रुद्रप्रयाग से प्रसिद्ध धार्मिक स्थल केदारनाथ धाम मात्र 86 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। अलकनंदा और मंदाकनी नदी का संगम यहां के खूबसूरत स्थानों में चार चाँद लगा देती हैं। आस्था का प्रतीक यह जिला भगवान शिव के नाम पर रुद्रप्रयाग रखा गया है।
 

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रुद्रप्रयाग का इतिहास 
रुद्रप्रयाग भारत के उत्तरांचल राज्य के एक जिले का नाम है। श्रीनगर से 34 किलोमीटर दूरी पर स्थित रुद्रप्रयाग का अनोखा इतिहास रहा है। बात करें रुद्रप्रयाग जिले के नामकरण के बारे में तो आस्था के प्रतीक इस जिले का नाम भगवान शिव के नाम पर "रुद्रप्रयाग" रखा गया है।
 
माना जाता है कि संगीत के उस्ताद नारद मुनि ने भगवान शिव की उपासना की थी, उपासना के उपरांत भगवान शिव ने मुनि नारद को आशीर्वाद देने के लिए रौद्र रूप में अवतार लिया था। शायद यही कारण है कि जिले को रुद्रप्रयाग के नाम से जाना जाता है। आस्था के संगम में डूबे इस स्थान पर जगदंबा और शिव की प्रमुख धार्मिक मंदिर है। इस मंदिर को यहां के प्रमुख धार्मिक स्थलों में माना जाता है।

प्रमुख आकर्षण 
रुद्रप्रयाग स्वयं में आस्था और अध्यात्म की नगरी के नाम से विख्यात है। अलकनंदा और मंदाकिनी नदी के साथ भगवान शिव और माता जगदंबा की मंदिर यहां के प्रमुख आकर्षण  केंद्र हैं। रुद्रप्रयाग के आस पास कई ऐसे आकर्षक स्थान है जो यहां आने वाले पर्यटकों का मन मोह लेते हैं।

अगस्त्यमुनि  
अगस्त्यमुनि की दूरी रुद्रप्रयाग से मात्र 18 किलोमीटर है। अगस्त्य मुनि का आश्रम 1000 मीटर की ऊंचाई पर मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है। तपस्या के गुणों से भरे इस आश्रम को अगस्त्य से मुनि का घर माना जाता है। माना जाता है कि मुनि अगस्त्य यहां  कई वर्षों तक तपस्या की थी यही कारण है कि  इस स्थान को देव तुल्य का दर्जा दिया जाता है। स्थानीय लोग यहां स्थित मंदिर को अगस्तेश्वर महादेव मंदिर के नाम से पुकारते हैं। 

इस स्थान पर स्थित मंदिर के सबसे खास बात यह है कि यहां के पत्थर की दीवारों पर आगंतुक प्रख्यात हिन्दू देवी देवताओं की तराशे गए चित्रों का अवलोकन किया जा सकता है। पर्यटन नजरिये से यह मंदिर बेहद खास है क्योंकि यहां पर आयोजित होने वाले मेलों में भारी संख्या में पर्यटक अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। प्रमुख त्योहारों की बात करें तो बैसाखी पर्व यहां बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है इस दिन यहां के स्थानीय लोग और आए हुए पर्यटकों दोनों हर्ष और उल्लास में झूमते हैं।

गुप्तकाशी 
आस्था के नजरिये से गुप्तकाशी एक बेहद ही खूबसूरत स्थान है। यहां स्थान समुद्र तल से 1319 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह पतित पावनी माता गंगा और यमुना नदी का आपस के मेल से बना संगम बेहद आकर्षित है। यहां की एक कथा प्रचलित है। माना जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव भगवान शिव के दर्शन करना चाहते थे। 

भगवान शिव को गुप्त काशी से केदारनाथ जाने के पीछे का कारण भी यही बताया जाता है कि भगवान शिव पांडवों से नहीं मिलना चाहते थे क्यों कि पांडवों ने अपने भाई का ही वध कर दिया था। गुप्तकाशी एक नाले पर स्थित है जो  भगवान शिव के प्रमुख मंदिर उखिमीठ के समीप है। यहां के प्रमुख आकर्षण केंद्रों की बात करें तो पुराना विश्वनाथ मंदिर, आराधनेश्वर मंदिर और मणिकर्णिका कुंड गुप्तकाशी के प्रमुख आकर्षक स्थान है।

सोनप्रयाग 
सोनप्रयाग प्रमुख धार्मिक स्थलों में शुमार है। यहां के प्रमुख मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि सोनप्रयाग के पवित्र पानी को मात्र स्पर्श कर लेने से बैकुंठ धाम पहुंचने में मदद मिलती है। यह स्थान समुद्री तल से 1829 मीटर की ऊंचाई पर है।केदारनाथ जाने वाले प्रमुख मार्ग पर यह स्थित है।
 
यहां से केदारनाथ की दूरी की बात करें तो वह मात्र 19 किलोमीटर है। सबसे खास बात यह कि यह है कि यहां भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ था। त्रियुगी नारायण की दूरी सोनप्रयाग से बस द्वारा मात्र 14 किलोमीटर है। बस की यात्रा के उपरांत मात्र पांच किलोमीटर पैदल यात्रा करना पड़ता है।

गौरी कुंड 
गौरी कुंड स्थान की सबसे खास बात यह है कि यहाँ माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। गौरी कुंड में गौरी देवी का भी दर्शन किया जाता है। सोनप्रयाग से गौरीकुंड की दूरी मात्र 5 किलोमीटर है। केदारनाथ में प्रवेश करने से पहले गौरी कुंड में स्थित पुल पर लोग गर्म पानी से स्नान करते हैं। केदारनाथ धाम यात्रा करने के लिए गौरी कुंड ही अंतिम बस स्टेशन है।

खिरसू
हिमालय के मध्य में स्थित बर्फ की चादर से ढका यह स्थान बेहद खूबसूरत है। यह स्थान पर्वतों के मध्य में स्थित है। पर्यटन की दृष्टि से यह स्थान बेहद खास है क्योंकि यहां पर्वतीय आकर्षण और बर्फबारी का बेहद सुंदर नमूना प्रदर्शित होता है। यह स्थान समुद्र तल से 1700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
 
खिरसू पौड़ी से मात्र 19 किलोमीटर की दूरी पर है। पर्वतीय आकर्षण के साथ साथ इस स्थान पर वृक्षों का भी अवलोकन किया जा सकता है। यहां के प्रमुख वृक्षों में वोक, देवदार और फलोधान है। यहाँ कहीं अनजाने शिखर आपको खुली आँखों से निहारा जा सकता है।

कब और कैसे जाएं 
रुद्रप्रयाग जाने के सड़क, रेल और हवाई तीनों मार्ग उपलब्ध है।सबसे नजदीकी हवाई अड्डे की बात करें तो यह उत्तराखंड का जोलीग्रांट एयरपोर्ट है। यह एयरपोर्ट रुद्रप्रयाग से मात्र 159 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 

रेलवे रेलवे के द्वारा रुद्रप्रयाग जाने के लिए यहां के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश पर उतरना पड़ता है। ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग की दूरी मात्र 152 किलोमीटर दूर है।

सड़क मार्ग के जरिए विरुद्ध प्रयोग आसानी से जाया जा सकता है। सड़क मार्ग से यात्रा तय करने के लिए यहां कई महत्वपूर्ण गढ़वाल डिविजन से जुड़े हुए रास्तों का चयन कर सकते हैं। इन रास्तों पर लगातार रुद्रप्रयाग के लिए कई बसें चलती हैं। देहरादून, ऋषिकेश, कोटद्वार, पैढ़ी, जोशीमठ, गोपेश्वर, बदरीनाथ, केदारनाथ, नैनीताल, अल्मोड़ा, दिल्ली आदि स्थानों से रुद्रप्रयाग के लिए आसानी से बस मिल जाती है।
 

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