शिल्प-सौंदर्य और निर्माण कला का अद्तभुत उदाहरण है राजस्थान का दिलवाड़ा मंदिर

राजस्थान के माउंट आबू में स्थित दिलवाड़ा मन्दिर जैन धर्म के लोगों के सबसे प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। इस विशाल मंदिर का निर्माण चालुक्य वंश द्वारा 11वीं और 13 वीं शताब्दी में किया गया था। दिलवाड़ा मंदिर में एक ही आकार के पाँच मंदिर शामिल हैं जो जैन धर्म के तीर्थकरों को समर्पित हैं। ये सभी मंदिर  अपनी अद्भुत वास्तुकला के लिए जाने जाते हैं। इन मंदिरों में 48 स्तंभ हैं जिनमें नृत्यांगनाओं की आकृतियां बनी हुई हैं। दिलवाड़ा के मंदिर प्राचीन भारत की निर्माण कला का बेहतरीन उदाहरण हैं। यह मंदिर बाहर से बहुत ही साधारण दिखता है लेकिन इसकी छत, दीवारों और स्तंभों पर की गई संगमरमर अद्भुत नक्काशी यहाँ आने वाले पर्यटकों को हैरान कर देती है। आइए जानते हैं दिलवाड़ा मंदिरों के बारे में - 

विमालवसाहि मंदिर
यह मंदिर दिलवाड़ा मंदिर श्रृंखला का पहला मंदिर है। यह मंदिर बाकी सभी मंदिरों में से सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसे गुजरात के चालुक्य राजा भीम प्रथम के मंत्री विमल शाह ने 1031 ईसवी में बनाया गया था। यह मंदिर भगवान आदिनाथ को समर्पित है। यह मंदिर सफेद संगमरमर से पूर्ण रूप से तराशा गया है। यह मंदिर चारों ओर से घिरे हुए गलियारों के बीच खुले आंगन में स्थित है। इस मंदिर में कई जैन महात्माओं की तस्वीरें स्थित हैं। इस मंदिर में भगवान आदिनाथ की आँखें असली हीरे की बनी हुई हैं। 

लूना वसाही मंदिर 
यह मंदिर दिलवाड़ा मंदिर परिसर का दूसरा प्रमुख मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण 1230 में वास्तुपाल और तेजपाल नाम के दो भाइयों द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर भगवान नेमिनाथ को समर्पित है। इस मंदिर में एक केंद्रीय हॉल भी है जिसे रंग मंडप कहा जाता है। यहाँ 360 छोटे-छोटे तीर्थंकरों की मूर्तियाँ हैं जिन्हें गोलाकार में स्थापित किया गया है। इस मंदिर में स्थापित भगवान नेमिनाथ की मूर्ती काले संगमरमर से बनी हुई है। इसके अलावा यहाँ एक सुंदर हाथीशिला भी है जिसमें 10 संगमरमर के हाथी बने हुए हैं। इस मंदिर में काले पत्थर का स्तंभ भी है, जिसे कीर्ति स्तम्भ के नाम से जाना जाता है। 

पित्तलहर मंदिर 
दिलवाड़ा मंदिर श्रृंखला का तीसरा पित्तलहर मंदिर बेहद सुंदर है। यह मंदिर भगवान ऋषभदेव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण भीम सेठ द्वारा किया गया था। माना जाता है कि इस मंदिर में स्थपित भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा चार किलो की पंचधातु और हजारों किलो सोने से निर्मित है। इस मंदिर के अंदर गर्भगृह, गुड मंडप और नवचौकी है। नवचौकी नौ सजावट वाली छतों का एक समूह है। 
 
पार्श्वनाथ मंदिर 
पार्श्वनाथ मंदिर यहाँ का चौथा प्रमुख और सबसे ऊंचा मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण 1458-59 में मांडलिक द्वारा करवाया गया था। यह तीन मंजिला मंदिर भगवान पार्श्वनाथ  को समर्पित है। इस मंदिर के चारों पक्षों में चार भव्य हॉल बने हुए हैं। इस मंदिर के बहरी हिस्से में ग्रे बलुआ पत्थर पर बेहतरीन नक्काशी की गई है। 

महावीर स्वामी मंदिर
यह दिलवाड़ा मंदिर श्रृंखला का अंतिम मंदिर है जिसका निर्माण 1582 में किया गया था। यह मंदिर भगवान महावीर को समर्पित है। महावीर स्वामी मंदिर बाकी मंदिरों की तुलना में काफी छोटा है लेकिन इसकी दीवारों पर अद्भुत नक्काशी की गई है। इस मंदिर की ऊपरी दीवारों पर सिरोही के कलाकारों द्वारा बनाए गए कई खूबसूरत चित्र देखने को मिलते हैं।