यूनेस्को के विश्व धरोहर में शामिल हैं कोणार्क सूर्य मंदिर, वास्तुशास्त्र नजरिये से भी है बेहद खास

भारत के राज्य उड़ीसा के कोणार्क में स्थित सूर्य मंदिर आस्था और वास्तु शास्त्र के नजरिये से खास माना जाता है। भव्य रथ के आकार का बना हुआ यह मंदिर महाराज नरसिंह देव के द्वारा निर्मित कराया गया था। यूनेस्को के विश्व धरोहर और भारत के सातवें अजूबे में शामिल सूर्य मंदिर आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। उड़ीसा का सबसे लोकप्रिय जिला पुरी से 21 मील उत्तर पूर्व चंद्रभागा नदी के किनारे यह मंदिर स्थित है। सूर्य मंदिर लाल बलुआ पत्थर तथा काले ग्रेनाइट जैसे महंगे धातुओं से निर्मित है।

आस्था के साथ-साथ कोणार्क मंदिर वास्तु शास्त्र के लिए भी विश्व प्रचलित है। मंदिर में भगवान सूर्य का पूजन किया जाता है। सूर्य मंदिर में भगवान सूर्य की तीन प्रतिमाएं हैं। यहाँ हैंडलूम के कपड़े और हस्तशिल्प से बनी सजावटी वस्तुएं पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। समुद्री तट के आसपास बिकने वाले सीपियों से बनी सुन्दर आभूषण लोगों को बहुत पसंद आता है। मंदिर के आसपास जगन्नाथपुरी मंदिर, चिल्का झील, उदय गिरि की गुफाएं और महेंद्र गिरि पर्वत जैसे कई ऐतिहासिक स्थल मौजूद हैं।

मंदिर का आकर्षण 

कोणार्क सूर्य मंदिर की कल्पना सूर्य के रथ के रूप में की गई है। पुरी जिले से लगभग 23 मील की दूरी पर चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित यह मंदिर अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए दुनिया भर में मशहूर है। यहां दर्शन करने दूर दराज से लोग मंदिर की आकर्षित छवि पर मोहित होकर आते हैं। विशाल मंदिर की संरचना रथ के आकार की बनाई गई है। मंदिर के छवि को इस प्रकार दर्शाया गया है जैसे रथ में 12 जोड़े विशाल पहिये और 7 शक्तिशाली घोड़े इसे खींच रहे हों। प्रातःकाल में मंदिर के शिखर पर सूर्य का उदय की लालिमा अपने लाल प्रकाश के कण के सुन्दर आकर्षण से मंदिर की सुंदरता में चार चांद लगा देता है।
 
मंदिर का मुख पूर्व में उदीयमान सूर्य की ओर है। मंदिर के आकर्षण का दूसरा स्वरूप इसके तीन प्रधान हिस्से देउल गर्भगृह, नाट्यमंडप और जगमोहन मंडप एक ही सीध में हैं। इस मंदिर में अलग अलग मुद्राओं में हाथियों की सजीव आकृतियां आकर्षण के केन्द्रो में एक है। चित्र और नक्काशियों के लिए भी यह मंदिर प्रचलित है। यहां देवी, देवताओं, गंधर्व, नाग, किन्नर और अप्सराओं के चित्र नक्काशियों में तैयार किए गए हैं।

मंदिर के इतिहास से जुड़ी प्रचलित कहानियां 

संहिताओं और पुराणों में इस स्थान को पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में उल्लेख किया गया है। एक प्रचलित कहानी की मानें तो कहा जाता है कि कृष्ण और जामवंती के पुत्र साम्ब बेहद ही सुन्दर थे। कृष्ण ने उन्हें कुष्ठ रोगी होने का श्राप स्त्रियों के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देखकर बिना कुछ सोचे समझे दे दिया। उसके बाद अपने पुत्र के क्षमा मांगने पर भगवान उन्हें कोणार्क जाकर सूर्य मंदिर की आराधना करने का आदेश दे दिया। 

ऐसा माना जाता है कि आराधना से प्रसन्न होकर सूर्य देव कृष्ण के पुत्र को चंद्रभागा नदी में स्नान करने को कहा। स्नान करते समय उन्हें कमल पत्र पर सूर्य की मूर्ति दिखाई पड़ी। उस मूर्ति को ब्राह्मणों द्वारा उन्होंने प्राण प्रतिष्ठा करवाई। इस प्रकार कृष्ण पुत्र को अपने पिता श्री कृष्ण से श्राप से मुक्ति मिल गई। पुराणों में इस मंदिर का उल्लेख कोणार्क अथवा कोणादित्य के नाम से किया गया है। लोगों की मान्यता के अनुसार रथ सप्तमी के दिन चंद्रभागा नदी में कृष्ण पुत्र को यह मूर्ति मिली थी। इसी मान्यता के अनुसार हर वर्ष लोगों द्वारा शुक्ल पक्ष सप्तमी के दिन यहां सूर्यदेव की पूजा अर्चना की जाती है।

मंदिर आकर्षण और प्रमुख उपलब्धि 

आस्था और प्राचीन वास्तुकला से मशहूर इस मंदिर को यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किया गया है। मंदिर में मौजूद कुछ आकृतियां जीवन में सकारात्मकता, प्रेरणादायी, संदेश देती हैं। प्रवेश द्वार पर शेरों द्वारा हाथियों के विनाश का दृश्य अंकित है। शेर अहंकार और हाथी धन का प्रतीक माना जाता है। यह मंदिर में मौजूद पहिये सनडायल (धूप घड़ी) का काम करते हैं। कलाई में घड़ी न रहते हुए भी समय का अनुमान यहां मौजूद धूप घड़ी से लगाया जा सकता है।

कोणार्क मंदिर कब और कैसे जाएं?

कोणार्क मंदिर में अधिक सर्दी नहीं पड़ती है। इसलिए यहां जाने का सबसे अच्छा महीना नवंबर से मार्च के बीच होता है। इस महीने में मंदिर का मानसून पर्यटकों के कदम से कदम मिलाकर पर्यटन यात्रा को बेहद ही खास बना देता है। हवाई मार्ग से सूर्य मंदिर जाने के लिए भुवनेश्वर एयरपोर्ट पर उतरे भुवनेश्वर के एयरपोर्ट के सूर्य मंदिर मात्र 64 की.मी.दूर है। रेल मार्ग से सूर्य मंदिर जाने के लिए पूरी रेलवे स्टेशन पर उतरे वहां से सूर्य मंदिर मात्र 31 की.मी.दूर है।