हड़प्पा सभ्यता और हिन्दू धर्म के बीच क्या है समानता? जानिए हड़प्पा सभ्यता का संपूर्ण इतिहास

हड़प्पा सभ्यता आज सिर्फ इतिहास के पन्नों तक ही सीमित है, परन्तु अपने अस्तित्व की पराकाष्ठा से आज भी प्रकाशमान है।कई पत्रिकाओं में प्रकाशित शोध के अनुसार यह सभ्यता अमूमन 8000 वर्ष पुरानी सभ्यता है। सिंधू घाटी सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता,हिन्दू सरस्वती सभ्यता इन तीनों नामो से प्रचलित यह सभ्यता प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में प्रमुखता से शुमार है।सिंधू घाटी सभ्यता के प्रमुख केंद्र मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़, हड़प्पा आदि प्रमुख केंद्र थे। भिर्दाना हिंदू घाटी सभ्यता का अब तक का खोजा गया सबसे प्राचीन नगर है।

नगर की स्थापना 

कुछ मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि 2600 ईसा पूर्व, आज से लगभग 4600 वर्ष पूर्व नगर की स्थापना कि गयी थी। 5000 वर्ष पुराना शिवलिंग यहाँ खुदाई के दौरान मिला था। 1940 में हुई खुदाई के दौरान पुरातात्विक विभाग के एम एस वत्स को यह शिवलिंग मिली थी। भगवान शिव के अनेकों नामों में एक नाम पशुपतिनाथ भी है। सभ्यता के काल निर्धारण की बात करें तो कुछ इतिहासकारों द्वारा इसका निर्धारण 2700 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व बताया जाता है।सिंह का बाग के नाम से मशहूर हड़प्पा का नगर मोहनजोदड़ो अपनी सभ्यता की अलौकिक संस्कृति से प्रसिद्ध है। 

हड़प्पा सभ्यता की संस्कृति 

सूती कपड़ों के उपयोग का प्रमाण मोहनजोदड़ो में मिल जाता है। सूती कपड़ों के उपयोग से यह बात स्पष्ट होती है कि यहां के लोग कपास की खेती से अनभिज्ञ नहीं थे, लोग कपास की खेती करने जानते थे।इतिहासकारों का तो यह भी मानना है कि पहली बार कपास उपजाने का श्रेय हड़प्पा वासियों को ही दिया जाता है। हड़प्पा में मिले अवशेषों में कपड़ों के कई टुकड़े भी देखने को मिले थे। खुदाई के दौरान यहां चांदी के एक फूलदान के ढक्कन तथा कुछ अन्य तांबे की वस्तुएं भी मिली थी। यहां मिले अवशेषों से यहां की संस्कृति और क्रिया कलापों का आकलन करना शुरू कर दिया गया, कपड़ों के टुकड़े से यह बात स्पष्ट हुई कि यहां के लोग कपास के बारे में जानते थे तो वहीं चांदी के टुकड़े से और लोहे के अवशेष मिलने से यह बात पता चलता है कि इस सभ्यता के लोग शतरंज का खेल खेला करते थे साथ ही लोहे के बारे में भी जानकारी रखते थे। यहां से कई बड़ी उपयोगी मोहरें भी मिली हैं जिन पर सर्वोत्तम कलाकृतियां दर्ज हैं। यहां के क्षेत्रीय भाषा की लिपि चित्रात्मक थी।यहां के लोग चार गोल के बारे में भी जानते थे। इस बात का पता तब चलता है जब यहां मिले अवशेषों में विशाल सानागार में जल के रिसाव को रोकने के लिए ईंटों के ऊपर जिप्सम के गारे चारकोल की परत चढ़ाई गई थी।यहां के अवशेषों में प्राप्त पशुपति के मुहर पर हाथी और बैल अंकित हैं। हड़प्पा सभ्यता के दौरान लाल रंग के मिट्टी के बर्तन उपयोग किए जाते थे।

मोहनजोदड़ो 

हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख केंद्रों में से एक मोहनजोदड़ो सिंधी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ  'मुर्दों का टीला' होता है। भिर्दाना हिंदू घाटी सभ्यता का अब तक का खोजा गया सबसे प्राचीन नगर है।मुअनजोदड़ो भी इसे कहा जाता है। सिंधु घाटी के प्रमुख नगर हड़प्पा के अंतर्गत यह नगर(मोहनजोदड़ो) आता है।सर्वप्रथम हड़प्पा सभ्यता के विशाल टीलों की ओर सर चार्लस मेमन ने अपना ध्यान आकर्षित किया था। विशाल टीलों से पटा हुआ मोहनजोदड़ो सिंधु घाटी सभ्यता के अंतर्गत आने वाला नगर है। सिंधु नदी के किनारे के दो प्रमुख स्थान हड़प्पा और मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान) में खुदाई किए जाने पर यह नगर पूरी तरह से विकसित तथा सभ्यता के कई अवशेष भी मिले हैं।सिंधु घाटी सभ्यता को 'हड़प्पा सभ्यता' का नाम सर जॉन मार्शल ने दिया था। ऐतिहासिक युग मानी जाने वाली इस सभ्यता की समकालीन सभ्यता मेसोपोटामिया थी।

हड़प्पा सभ्यता का हिन्दू धर्म के बीच सामानता

असंख्य मूर्तियां, पुरोहित की मूर्ति, बैल, नंदी, मातृदेवी, बैलगाड़ी और शिवलिंग सभी चीजें हिन्दू धर्म के प्रतीक हैं। खुदाई के दौरान हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में असंख्य देवियों की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। खुदाई के दौरान हिन्दू धर्म के प्राचीन स्थिति कैसी थी यह बाय बात स्पष्ट हो जाती है।मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में मिली मूर्तिया मातृदेवी और प्रकृति देवी की है। प्राचीन काल में भारतीय मातृदेवी और प्रकृति देवी की पूजा अर्चना किया करते थे।प्राचीन काल के बाद आधुनिक काल में कि जाने वाली पूजा अर्चना से स्पष्ट हो जाता है कि दुनिया के सबसे रहस्यमयी सभ्यता की श्रेणी में हिंदू घाटी सभ्यता आती है।सभ्यता की सबसे अच्छी महत्वपूर्ण बात यह है कि आज तक इस सभ्यता के पतन का कोई स्रोत नहीं मिला है।हड़प्पा सभ्यता के अधिकारिक खोज का सहायता या राम साहनी हो जाता है। सन 1921 में दया राम साहनी ने हड़प्पा सभ्यता की आधिकारिक खोज की थी।इसके पहले ही वर्ष 1842 में चार्लस मेमन ने पहली बार हड़प्पा सभ्यता को खोज लिया था।हड़प्पा के अधिकारी खोज में दयाराम सहनी का सहयोग पूरातात्वविद माधव स्वरुप वत्स ने किया था। अधिकारिक खोज में हिन्दू धर्म से जुड़े आप हड़प्पा सभ्यता में कई प्रतीक मिले थे।थे।

सिंधु घाटी के स्वर्ण 

सिंधु घाटी की सभ्यता का गौरव यहां मिले अवशेषों से ज्ञात पड़ता है।इतिहासकार तथा प्रारंभिक पूर्वज हड़प्पा सभ्यता के लोगों के जीने का ढंग उनके खानपान पोशाक पहनावा के बारे में हमेशा से उत्सुक रहे हैं।यहां उत्खनन के दौरान यहाँ की सभ्यता के साथ साथ आभूषणों की भी विशेष जानकारी प्राप्त हुई है। उत्खनन में मिले विशेष प्रकार के आभूषण से यह जानकारी मिली कि यहां स्वर्ण निर्मित आभूषणों और पितवर्ण धातु के प्रति लोगों का खासा लगाव था।यहां के निवासियों के अनमोल जीवन के बारे में इसका पता लगाया जा सकता है। उत्खनन के दौरान प्राप्त हुई वस्तुओं में मस्तक आभूषण, हार,अंगूठी, लटकन जंतर आदि हैं।आज भी अवशेषों को कई संग्रहालयों में सजा के रखा गया है। उत्खनन में मिले आभूषणों को नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय के आभूषण दीर्घा,(अलंकार में) और हड़प्पा दीर्घा में प्रदर्शन के लिए रखा गया है।यहां आभूषणों के अलावा उत्खनन के दौरान प्राप्त प्रतिमाओं और अन्य वस्तुओं को भी रखा गया है।हड़प्पा सभ्यता के सभी अनुमान यहां प्राप्त अवशेषों से ही लगाया जाता है।