महाभारत काल से भी पुराना है कश्मीर का इतिहास, कश्यप ऋषि ने बसाया था यह प्रदेश

हिमालय की गोद में बसा कश्मीर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में मशहूर है। यहाँ पर हर समय पर्यटकों का ताँता लगा रहता  रहता है। हर साल देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोग यहाँ घूमने आते हैं। कश्मीर में कई पर्यटन स्थल हैं जिनकी सुंदरता देखते ही बनती है। कश्मीर अपनी अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ अपने प्राचीन इतिहास और संस्कृति के लिए भी जाना है। कश्मीर भारत के सबसे प्राचीन राज्यों में से एक है। पौराणिक कथाओं में कश्मीर के इतिहास का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि इसका इतिहास महाभारत काल से भी पुराना है। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत काल से पहले कश्मीर के हिस्से भारत के 16 महाजनपदों में से तीन - गांधार, कंबोज और कुरु महाजनपद के अंतर्गत आते थे।

पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रेतायुग में प्रियव्रत के पुत्र प्रथम मनु ने इस भारतवर्ष को बसाया था। उस समय इसका नाम कुछ और था। उनके शासन काल के दौरान कश्मीर एक जनपद था। माना जाता है कि पहले यहाँ पर इंद्र का राज हुआ करता था। कुछ कथाओं के अनुसार इस क्षेत्र पर जम्बूद्वीप के राजा अग्निघ्र राज करते थे। हालांकि, सतयुग में यहाँ कश्यप ऋषि का राज हो गया। 

पौराणिक कथाओं के मुताबिक कश्मीर का प्राचीन नाम कश्यप सागर (कैस्पियन सागर) था और यह नाम कश्यप ऋषि के नाम पर ही है। शोधकर्ताओं का मानना है कि कश्यप सागर से लेकर कश्मीर तक ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का शासन हुआ करता था। कश्यप ऋषि का इतिहास कई हज़ार वर्ष पुराना है। पौराणिक कथाओं में उल्लेख है कि कैलाश पर्वत के आसपास भगवान शिव के गणों की सत्ता थी। उक्त इलाके में ही राजा दक्ष का भी साम्राज्य था।

ऐसा माना जाता है कि ऋषि कश्यप कश्मीर के पहले राजा थे। कश्यप ऋषि की एक पत्नी कद्रू ने अपने गर्भ से कई नागों को जन्म दिया था। जिनमें से प्रमुख 8 नाग थे- अनंत (शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक। इन्हीं नागों से नागवंश की स्थापना हुई। कश्मीर का अनंतनाग नागवंशियों की राजधानी थी। आज भी कश्मीर में कई स्थानों के नाम इन्हीं नागों के नाम पर हैं। 

राजतरंगिणी तथा नीलम पुराण की कथा में भी कश्मीर का उल्लेख है। राजतरंगिणी 1184 ईसा पूर्व के राजा गोनंद से लेकर 1129 ईसवी के राजा विजय सिम्हा  तक के कश्मीर के प्राचीन राजवंशों और राजाओं का प्रमाणिक दस्तावेज है। इस कथा के अनुसार पहले कश्‍मीर की घाटी एक बहुत बड़ी झील हुआ करती थी।  बाद में कश्यप ऋषि यहाँ आए और झील से पानी निकालकर उसे एक प्राकृतिक स्‍थल में बदल दिया। 

आज भी कश्मीर में स्थानों के नाम नागवंश के कुछ प्रमुख नागों के नाम पर हैं। इनमें से अनंतनाग, कमरू, कोकरनाग, वेरीनाग, नारानाग, कौसरनाग आदि नागों के नाम पर कश्मीर में स्थानों का नाम है। इसी तरह कश्मीर के बारामूला का प्राचीन नाम वराह मूल था। प्राचीनकाल में यह स्थान वराह अवतार की उपासना का केंद्र था। वराहमूल का अर्थ होता है - सूअर की दाढ़ या दांत। पौराणिक कथाओं के अनुसार वराह भगवान ने अपने दांत से ही धरती उठा ली थी। 

इसी तरह कश्मीर के बड़गाम, पुलवामा, कुपवाड़ा, शोपियां, गंदरबल, बांडीपुरा, श्रीनगर और कुलगाम जिले का भी अपना अगल प्राचीन और पौराणिक इतिहास रहा है। यह इतिहास कश्मीरी पंडितों से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि कश्मीरी पंडित ही कश्मीर के मूल निवासी हैं और उनकी संस्कृति लगभग 6000 साल से भी ज्यादा पुरानी है। जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर को प्राचीन काल में प्रवर पुर नाम से जाना जाता था। श्रीनगर के एक ओर हरि पर्वत और दूसरी और शंकराचार्य पर्वत है। प्राचीन कथाओं के अनुसार शंकराचार्य ने शंकराचार्य पर्वत पर एक भव्य शिवलिंग, मंदिर और नीचे मठ की स्थापना की थी। 

यह भी माना जाता है कि कश्मीर को कभी 'सती 'या 'सतीसर' भी कहा जाता था। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवती सती यहां सरोवर में नौका विहार कर रही थीं। इसी बीच यहाँ पर कश्यप ऋषि जलोद्भव नामक राक्षस को मारना चाहते थे। राक्षस को  मारने के लिए कश्यप ऋषि तपस्या करने लगे। देवताओँ के आग्रह पर भगवती सती ने सारिका पक्षी का रूप धारण किया और अपनी चोंच में पत्थर रखकर राक्षस को मार दिया। वह राक्षस मर कर पत्थर हो गया। इसी को आज हरि पर्वत के नाम से जाना जाता है।