जानिए कोल्हापुर में स्थित महालक्ष्मी के इस प्राचीन मंदिर के बारे में

श्री महालक्ष्मी मंदिर, महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर में, पंचगंगा नदी के तट पर, पुणे से लगभग 156 मील दक्षिण में स्थित है। यहां देवी महालक्ष्मी को कई समुदायों द्वारा "अंबाबाई" के रूप में भी जाना जाता है और इसलिए इस मंदिर को श्री कोल्लूर अंबाबाई मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। हिंदू धर्म के कई पुराणों में इस मंदिर का उल्लेख किया गया है। इस मंदिर का विशेष धार्मिक महत्व का है और इसे दुनिया में देवी लक्ष्मी का सबसे पवित्र निवास माना जाता है। मान्यता के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण चालुक्य शासक कर्णदेव ने 7वीं शताब्दी में करवाया था। इसके बाद इस मंदिर का पुनर्निर्माण शिलहार यादव ने 9वीं शताब्दी में करवाया था।

महालक्ष्मी मंदिर की विशेषता
यह मंदिर देश में स्थित देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक प्रमुख स्थल है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस स्थान पर देवी सती का त्रिनेत्र गिरा था। यह मंदिर देवी  महालक्ष्मी का निवास माना जाता है। इस मंदिर के मुख्य गर्भगृह में महालक्ष्मी की 40 किलो की प्रतिमा स्थापित है। इस मूर्ति की लंबाई 4 फीट है और यह करीब 7,000 वर्ष पुरानी है। मंदिर में एक दीवार पर 'श्री यंत्र’ उकेरा गया है। एक पत्थर का शेर (देवी का वाहन), मूर्ति के पीछे खड़ा है। देवी के मुकुट में भगवान विष्णु के शेषनाग की एक छवि है। महालक्ष्मी के चार हाथों में उनके प्रतीक चिन्ह हैं। निचले दाहिने हाथ में एक मुलिंगुला (एक खट्टा फल) है, ऊपरी दाहिने हिस्से में एक बड़ी गदा है, जिसे कौमोदकी कहा जाता है,  ऊपरी बाएँ हाथ में एक ढाल या खेतका और निचले बाएँ हाथ में पानपात्र है। अधिकांश हिंदू पवित्र मूर्तियों के विपरीत, जो उत्तर या पूर्व दिशा में होती हैं, यहाँ देवी की मूर्ति पश्चिम दिशा में स्थापित है। मंदिर में पश्चिमी दीवार पर एक छोटी सी खुली खिड़की है, जिसके माध्यम से प्रति वर्ष तीन दिनों के लिए देवी की प्रतिमा पर सूर्य की रोशनी पड़ती है।

मंदिर के नाम से जुड़ी है प्रचलित कथा 
धार्मिक पुराणों के अनुसार प्राचीन समय में एक जगह थी, जहाँ एक नदी बहती थी। एक बार 'कोल्हासुर’ नामक एक दानव वहां आया और नदी का सारा पानी पीने लगा। इस तरह से वहां के लोग पानी से वंचित हो गए। तब उन्होंने देवी पार्वती से उनके दुखों को हल करने की प्रार्थना की। इस समस्या को देखते हुए देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु के साथ लड़ाई का बहाना बनाया और अपने भक्तों और शहर के लोगों को बचाने के लिए धरती पर आ गईं। वह महालक्ष्मी के रूप में आईं और कोल्हासुर राक्षस का वध किया। मरने से पहले, कोल्हासुर ने महालक्ष्मी से उसे क्षमा करने की याचना की और माता ने उसे माफ़ कर दिया। लेकिन मरने से पहले उसने देवी से वर माँगा कि उस क्षेत्र को उसका नाम मिले। देवी ने वर दे दिया और वहीं स्वयं भी स्थित हो गईं। तब इसे 'करवीर क्षेत्र' कहा जाने 
लगा।

मान्यताओं के अनुसार महालक्ष्मी अपने पति तिरुपति यानी विष्णु जी से रूठकर कोल्हापुर आईं थीं। यही कारण है कि दीपावली के दिन तिरुपति देवस्थान से आया शालु देवी को पहनाया जाता है। यह भी कहा जाता है कि किसी भी व्यक्ति की तिरुपति यात्रा तब तक पूरी नहीं होती है जब तक व्यक्ति यहां आकर महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना न कर ले। दीपावली की रात मंदिर में देवी की महाआरती की जाती है। मान्यता है कि यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना  पूरी होती है।