जानिए जगन्नाथ पुरी और उनकी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के बारे में

उड़ीसा के पुरी में स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर, देश के प्रसिद्ध चार धामों में से एक है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ यानी श्रीकृष्ण को समर्पित है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का एक प्रसिद्ध मंदिर है। मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है। इसके शिखर पर भगवान विष्णु, जिसके शिखर पर विष्णु का श्री सुदर्शन चक्र मंडित है। अष्टधातु से बने इस चक्र को नीलचक्र भी कहा जाता है। मंदिर का मुख्य ढांचा 214 फीट ऊंचे पाषाण चबूतरे पर स्थित है। इसके गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। मुख्य भवन 20 फीट ऊंची दीवार से घिरा हुआ है। 

जगन्नाथपुरी की वार्षिक रथ यात्रा
मान्यताओं के अनुसार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने एक दिन ने उनसे द्वारका के दर्शन करने की इच्छा जताई। तब भगवान जगन्नाथ ने सुभद्रा की इच्‍छा को पूरा करने के लिए उन्‍हें रथ में बैठाया और पूरे नगर का भ्रमण करवाया। इसके बाद से जगन्नाथपुरी की रथयात्रा की शुरुआत हुई थी। इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता यानी भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और भगिनी सुभद्रा तीनों की तीनों की ही अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथ यात्रा निकाली जाती है।

यात्रा की शुरुआत सबसे पहले बलभद्र जी के रथ से होती है। उनका रथ तालध्वज के लिए निकलता है। इसके बाद सुभद्रा के पद्म रथ की यात्रा शुरू होती है। सबसे अंत में भक्त भगवान जगन्नाथ जी के रथ ‘नंदी घोष’ को बड़े-बड़े रस्सों की सहायता से खींचना शुरू करते हैं। रथ यात्रा पूरी कर भगवान जगन्नाथ को उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ मुख्य मंदिर से ढाई किमी दूर प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर पहुंचाया जाता हैं, जहां भगवान 7 दिनों तक आराम करते हैं। इसके बाद भगवान जगन्नाथ की वापसी की यात्रा शुरु होती है। 

रथ यात्रा का महत्व
मान्यता है कि इस दिन स्वयं भगवान जगन्नाथ पूरे नगर में भ्रमण करते हैं। यह भी माना जाता कि जो भक्त रथयात्रा के दौरान भगवान के दर्शन करते हैं और रास्ते की धूल में लेट-लेट कर यात्रा पूरी करते हैं उन्हें श्री विष्णु के उत्तम धाम की प्राप्ति होती है।