विश्वभर में प्रसिद्ध है ठाकुर जी का बांके बिहारी मंदिर, दर्शन मात्र से दूर होता है हर संकट

वृंदावन का बांके बिहारी मंदिर, भारत के सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह मंदिर मथुरा जिले में रमण रेती पर स्थित है। भगवान कृष्ण को समर्पित है। यह मंदिर बेहद खूबसूरत है और भक्तों के बीच बहुत प्रसिद्ध है। एक किंवंदति के अनुसार बांके बिहारी मंदिर का निर्माण किसी ने करवाया नहीं था, बल्कि यहाँ बांके बिहारी की मूर्ति स्वामी हरिदास की संगीत साधना से प्रकट हुई थी। स्वामी हरिदास जी भगवान कृष्ण के परम भक्त थे और उनका संबंध निम्बर्क पंथ से था। इस मंदिर का 1921 में स्वामी हरिदास जी के अनुयायियों के द्वारा पुनर्निर्माण कराया गया था। बांके का अर्थ होता है तीन कोणों पर मुड़ा हुआ। भगवान कृष्ण बांसुरी बजाते हुए इसी मुद्रा में होते हैं। बांसुरी बजाते समय भगवान कृष्ण का दाहिना घुटना बाएं घुटने के पास मुड़ा रहता था और सीधा हाथ बांसुरी को पकड़ने के लिए मुड़ा रहता था। इस दौरान भगवान का सिर भी एक तरफ हल्का सा झुका रहता था। यही वजह है कि इस मंदिर का नाम बांके बिहारी मंदिर पड़ा।

इस मंदिर की खास बात यह है कि मंदिर के सामने एक दरवाजा है जिस पर पर्दा लगा हुआ है। यह पर्दा हर एक या दो मिनट के अंतराल पर बंद एवं खोला जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से बांके बिहारी की आँखों में आँखें दाल कर भक्ति भाव से देख ले, बिहारी जी उसके साथ चल देते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में स्थापित काले रंग की बांके बिहारी की मूर्ति में राधा-कृष्ण का वास है। कहा जाता है की बांके बिहारी के दर्शन से साक्षात राधा-कृष्ण के दर्शन का फल प्राप्त होता है।  
 

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कहा जाता है कि श्रावन तीज के दिन ही ठाकुर जी झूले पर बैठते हैं। यहाँ भगवान की मंगला आरती की परम्परा नहीं है। इस मंदिर में सिर्फ जन्माष्टमी के दिन ही बांके बिहारी की मंगला आरती की जाती है। इस दिन ठाकुर जी के दर्शन प्राप्त करने वाले भक्त के सभी संकट दूर हो जाते हैं। अक्षय तृतीया के दिन सिर्फ भगवान के चरणों के दर्शन होते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त अक्षय तृतीया के दिन भगवान के चरणों के दर्शन करते हैं उनका बेड़ा पार लग जाता है। बांके बिहारी की पूजा में भगवान का श्रृंगार विधिवत किया जाता है। उन्हें भोग में माखन, मिश्री,केसर, चंदन और गुलाब जल चढ़ाया जाता है।