हिंदुस्तान के दिल पर राज़ करती इस दरगाह से आज तक कोई खाली हाथ नहीं लौटा

राजस्थान के अजमेर शहर में बसी शरीफ़ दरगाह कहने को तो मुस्लिम धर्म के लोगों का तीर्थ स्थल है पर इस दरगाह की मान्यता दुनिया भर में है। इस दरगाह में ख़्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का मकबरा स्थित है जिन्हें हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ से भी जाना जाता हैं। हर धर्म के लोग यहाँ माथा टेकने और चादर चढ़ाने आते हैं। मान्यता है कि एक बार इस दरगाह पर कोई मन्नत माँग ले वो इंसान यहाँ से खाली हाथ वापस नहीं जाता। अंग्रेज़ी लेखक कर्नल टाड ने अपनी पुस्तक में दरगाह शरीफ़ का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि 'मैंने हिन्दुस्तान में एक कब्र को राज करते देखा है'। आइए जानते हैं दरगाह शरीफ़ से जुड़ी दिलचस्प बातों के बारे में-
 
अजमेर की दरगाह पर आने वाले सबसे पहले व्यक्ति थे ख़्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती जिन्होंने 1332 में यहाँ की यात्रा की थी। दरगाह में हर रोज नमाज़ के बाद सूफ़ी गायक दरगाह शरीफ़ के हॉल में महफ़िल-ए-समां में अल्लाह को याद करते हुए कव्वाली गाते है। कहा जाता है कि एक साधारण पानी भरने वाले निज़ाम सिक्का नामक व्यक्ति ने एक बार यहाँ पर मुग़ल बादशाह हुमायूँ को डूबने से बचाया था, निज़ाम सिक्का की मृत्यु के बाद बादशाह ने उनका मकबरा भी दरगाह के अंदर बनवाया था।
 
 
दरगाह में सूफी संत मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की पुण्यतिथि पर 6 दिन का वार्षिक उत्सव उर्स मनाया जाता है। कहा जाता है की ख़्वाजा चिश्ती ने अपने आपको 6 दिन के लिए कमरे में बंद करके अल्लाह की प्रार्थना की थी। उर्स का उत्सव इस्लाम कैलेंडर के रजब माह की पहली से छठी तारीख तक मनाया जाता है।
 
दरगाह के अंदर दो बड़े कढाहे रखे हुए हैं जिनमें से बड़े वाले कढाहे को मुगल बादशाह अकबर ने दरगाह को भेट में दिया था और छोटे वाले कढाहे को बादशाह जहाँगीर ने दरगाह पर चढ़ाया था। इन कढाहों में रात को बिरयानी बनाई जाती है और उसे सुबह प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
 
दरगाह के अंदर मौजूद शाह जहानी मस्जिद, मुगल वास्तुकला का एक अनोखा नमूना है जहाँ 33 खूबसूरत छंदों में अल्लाह के 99 पवित्र नामों को लिखा गया है।
 
 
दरगाह के पश्चिम में चांदी का एक खूबसूरत दरवाजा है जिसे जन्नती दरवाजा कहा जाता है। यह दरवाजा वर्ष में चार बार ही खुलता है- वार्षिक उर्स के समय, दो बार ईद पर, और ख्वाजा शवाब की पुण्यतिथि के उर्स पर।
 
बादशाह अकबर ने जहांगीर को पुत्र के रूप में प्राप्त करने के बाद अजमेर शरीफ के अंदर अकबर मस्जिद बनवाई थी। अब इस मजिद में मुस्लिम धर्म के बच्चों को कुरान की तामिल (शिक्षा) दी जाती है।
 

दरगाह के लोग संध्या प्रार्थना से 15 मिनट पहले दीपक जलाये जाते हैं और ड्रम की धुन पर फारसी छंद गाये जाते हैं। छंद गायन के बाद जलते हुए दीपक लैम्प्स मीनार के चारों ओर रख दिए जाते हैं। इस परंपरा को 'रोशनी' कहा जाता है।