बलुआ पत्थरों से बना हुमायूं का मकबरा और पारसी कला का पर्याय बगीचा पर्यटन के नजरिए से है बेहद खास

भारत में कई वंश के शासकों ने अपना वर्चस्व जमाया उन्हीं में मुगल वंश का नाम मुखरता से लिया जाता है। वैसे तो मुगल वंश के शासकों को आक्रांता कहा जाता है परन्तु मुगल काल के समय बनी धरोहर और इमारतें इतिहास के रोचक जानकारी के साथ साथ आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। इन आकर्षण स्थलों का भ्रमण और धरोहरों का दीदार करने भारत के ही लोग नहीं अपितु विश्व से भी लोग आते हैं।

इन्हीं प्रमुख ऐतिहासिक धरोहरों में हुमायूं का मकबरा बेहद प्रचलित है। यह मुगल वास्तुकला से प्रेरित मकबरा स्मारक है। यह मकबरा नई दिल्ली के पुराने किले के निकट निजामुद्दीन पूर्व क्षेत्र में मथुरा मार्ग के निकट स्थित है। इस मकबरे में  मुगल वंश के सम्राट शासक हुमायूं की कब्र है। आकर्षण का बेहद ही खूबसूरत नमूना यह मकबरा ऐतिहासिक वास्तुकला और पर्यटन नजरिये से विश्व प्रसिद्ध है। मुगल शासक हुमायूं के साथ साथ इस ऐतिहासिक धरोहर  में कई राजसी लोगों की कब्र भी है।

मकबरे का इतिहास 
मुगल वंश के शासक हुमायूं के मृत्यु के उपरांत उसे 20 जनवरी 1553 में सर्वप्रथम दिल्ली में दफनाया गया था। कुछ दिन बीतने के बाद सन 1557 पंजाब के सरहिंद में ले जाया गया था। हुमायूं के इस वास्तुकला के सुन्दर नमूने वाले मकबरे का निर्माण हमीदा बानो बेगम के आदेशानुसार सन 1562 में 25 लाख की लागत से बनावाया गया था। इस मकबरे का निर्माण मुगल शासक हुमायूं के मृत्यु के 9 वर्ष उपरांत किया गया था। 

एक बड़े समकालीन इतिहासकार अब्द-अल-कादिर बदायूनी के अनुसार हुमायूं के इस मकबरे का सत्यापन फारसी वास्तुकार फिराक मिर्जा घियास ने किया था। फिराक मिर्जा घियास को मिर्जा घियासुद्दीन के नाम से भी जाना जाता है। वास्तुकला के विशेष संरचना करने वाले वास्तुकार घियास को हेरात बुखारा वर्तमान (उज्बेकिस्तान) से विशेष रूप से इमारत के निर्माण के लिए बुलवाया गया था। सबसे खास बात यह है कि हुमायूं के मकबरे का निर्माण पूरा होने के बाद ही इनकी मृत्यु हो गई थी। आज भी यह मकबरा देश की राजधानी दिल्ली में शान से खड़ा है। तमाम लोग यहाँ इतिहास के रोचक तथ्यों को जानने परखने और पर्यटन  के आनंद का लुप्त उठाने आया करते हैं।

मकबरे की खूबसूरती 
यमुना नदी के किनारे बसा यह खूबसूरत मकबरा इतिहास के रोचक तथ्य और अपने वास्तुकला से प्रेरित दुनिया भर में जाना जाता है। यहां घूमने के कई स्थान हैं। यहाँ हरे भरे रहे पौधों की हरियाली बेहद खूबसूरत और आकर्षक लगती हैं। मकबरे के ठीक सामने मौजूद पानी में मकबरे की प्रतिलिपि बेहद शानदार और आकर्षित लगता है। यहाँ कई शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री मूवी भी शूट की जाती हैं। घूमने वाले लोगों का जमावड़ा यहां प्रतिदिन लगता है।

मकबरे को बनाने के लिए सबसे अधिक बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। सबसे खास बात यह है कि आज तक किसी भी ऐतिहासिक इमारत को बनाने में इतने पत्थर नहीं लगे हैं। बलुआ पत्थर से बने मकबरे और यहां की  हरियाली सबसे खास है। निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के निकट स्थित यह मकबरा दिल्ली के आकर्षण स्थानों में शुमार है। यहां छोटे-छोटे कब्रों के तीन चार मकबरे हैं। मकबरे के अंदर हुमायूं के कब्र को हिंदुस्तान के लोगों के साथ साथ विदेशियों द्वारा भी अवलोकित किया जाता है। हुमायूं मकबरे की ये शानदार तस्वीर अक्सर लोग कैमरे में कैद करना चाहते हैं।

सबसे खास बात यह है कि इसकी खूबसूरती के कारण इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल भी घोषित किया जा चुका है। यहाँ मकबरे में बने चतुर्भुज आकार यानि चार बाग की खूबसूरती भी खूब देखी जाती है। बगीचों का खास नमूना यहां पारसी शैली में बना हुआ है, जो पूरे एशिया में इस प्रकार का पहला बाग है। हुमायूं का यह खास मकबरा 30 एकड़ तक की जमीन में फैला हुआ है।