यूपी में हैं एक नहीं कई ऐतिहासिक इमामबाड़े, जानें इनके बारे में

उत्तर प्रदेश अपनी संस्कृति और समृद्ध इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। उत्तर प्रदेश में ऐसी बहुत सी जगहें और इमारतें हैं जो अपने भीतर यहाँ के इतिहास के कई किस्से समेटे हुए हैं। यहाँ पर बहुत से ऐतिहासिक महल, किले, मंदिर, मस्जिद और इमामबाड़े हैं। आपने यूपी के प्रसिद्ध मंदिरों, किलों और मस्जिदों के बारे में तो सुना होगा लेकिन यहाँ के इमामबाड़ों का जिक्र थोड़ा कम होता है। उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध इमामबाड़ों के बारे में जाने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि इमामबाड़ा क्या होता है? इमामबाड़ा एक पवित्र स्थान होता है जहाँ शिया संप्रदाय के मुसलमानों की मजलिसें और अन्य धार्मिक समारोह होते हैं। यूपी में ऐसे बहुत से इमामबाड़े हैं जो यहाँ के इतिहास के गवाही देते हैं। आज के इस लेख में हम आपको उत्तर प्रदेश के ऐसे ही ऐतिहासिक इमामबाड़ों के बारे में बताएंगे - 

बड़ा इमामबाड़ा 
उत्तर प्रदेश के लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में मशहूर है। यह यूपी के ऐतिहासिक इमामबाड़ों में से एक है। इसका निर्माण 1748 में नवाब आसफ़उद्दौला द्वारा करवाया गया था इसलिए इसे आसिफ इमामबाड़ा के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ की वास्‍तुकला बेहद खूबसूरत है और यह मुगल शैली को स्पष्ट रूप से दर्शाती है। बड़े इमामबाड़ा को दुनिया की पाँचवी सबसे बड़ी मस्जिद माना जाता है। इस ईमारत में एक बड़ा हॉल है जहाँ नवाब बैठा करते थे। बड़े इमामबाड़े की भूल-भुलैया दुनियाभर में मशहूर है।इस भूल-भुलैया में कुल 489 दरवाजे हैं और 1000 से भी अधिक रास्ते हैं जो आपको भ्रम में डाल देंगे। इसमें एक बावड़ी (सीढ़ीदार कुआँ) भी है। शाही हमाम नामक यह बावड़ी गोमती नदी से जुड़ी है। इस इमारत की मुख्‍य विशेषता यह है कि इसमें कहीं भी लोहे का इस्‍तेमाल नहीं किया गया है और ना ही किसी यूरोपीय शैली की वास्‍तुकला को शामिल किया गया है। इस इमारत के मुख्‍य हॉल की छत करीब 15 मीटर ऊंची है। इस छत को बिना किसी सपोर्ट के खड़ा किया गया है। ऐसा माना जाता है कि 1785 में लखनऊ में रोजगार की कमी की वजह से भयावह भुखमरी की समस्या आ गई थी तब इस इमामबाड़े के निर्माण का फैसला लिया गया था जिससे लोगों को रोजगार और भरपेट भोजन मिल सके। 

छोटा इमामबाड़ा 
लखनऊ का छोटा इमामबाड़ा एक भव्‍य स्‍मारक है और यह उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक इमामबाड़ों में से एक है। छोटा इमामबाड़ा को हुसैनाबाद इमामबाड़ा या पैलेस ऑफ़ लाइट्स के नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण 1838 में अवध के तीसरे नवाब मोहम्‍मद अली शाह द्वारा करवाया गया था। छोटा इमामबाड़ा लखनऊ के पुराने क्षेत्र चौक के पास में ही स्थित है। इस इमामबाड़े को नवाब के मकबरे के रूप में बनाया गया है। यहाँ पर नवाब और उनके परिवार के अन्‍य सदस्‍यों की कब्र बनी हुई है। इस इमामबाड़े की मुख्य चोटी पर एक सुनहरा और बड़ा गुम्बद है और बुर्ज व मीनारें चारबाग पैटर्न पर बनाई गई हैं। इस स्‍मारक में एक बड़ा हॉल है जिसमें लगी झूमरें बेल्जियम से मँगवाई गई थी। इस इमारत में किया गया कांच का बेहतरीन काम किया गया है।  इसकी दीवारों पर अरब में लिखावट की गई है जो देखने में बहुत सुंदर लगती है। छोटा इमामबाड़ा को पैलेस ऑफ लाइट कहा जाता है क्‍योंकि त्‍यौहारों के दौरान इसे अच्‍छी तरह सजाया जाता था। इस स्‍मारक में लगी झूमरें, बेल्जियम से आयात करके लाई गई थी, जिन्‍हे इंटीरियर के लिए मंगवाया गया था। मुहर्रम के अवसर पर इस इमामबाड़े को लाइट्स से बहुत अच्छी तरह सजाया जाता है जिस वजह से इसका नाम पैलेस ऑफ़ लाइट्स पड़ा है। मुहर्रम के समय दूर-दूर से पर्यटक इसे देखने आते हैं। 

मक्का दर्जी इमामबाड़ा 
यूपी में लखनऊ ही नहीं बल्कि कई अन्य जगहों पर ऐसी ऐतिहासिक इमारतें बनी हुई हैं जो यहाँ के समृद्ध इतिहास को दर्शाती हैं। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सीतापुर में ऐसा ही एक इमामबाड़ा है। सीतापुर के खैराबाद का मक्का दर्जी इमामबाड़ा उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक इमामबाड़ों में से एक है। यह इमामबाड़ा जिला मुख्यालय से करीब 8 किमी दूर स्थित है। इसका निर्माण 1838 में नवाब नसीरूद्दीन हैदर ने करवाया था। नवाब हैदर ने अपनी शेरवानी व टोपी की बेहतरीन सिलाई से खुश होकर मक्का दर्जी के लिए इस  इमामबाड़ा का निर्माण कराया था। यह इमामबाड़ा अपनी बेहतरीन नक्काशी के लिए जाना जाता है।

सिब्तैनाबाद इमामबाड़ा 
लखनऊ के हज़रतगंज में स्थित सिब्तैनाबाद इमामबाड़ा भी उत्तरप्रदेश की ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है। इसका निर्माण 1847 में नवाब वाजिद अली शाह ने करवाया था। इस स्मारक की देखभाल का जिम्मेदारी राज्य पुरातत्व सर्वेक्षण को सौंपी गई है। इस इमामबाड़े के दो गेट हैं। एक गेट हजरतगंज की मुख्य सड़क पर है, जबकि दूसरा गेट उसके पीछे बना हुआ है।