स्वर्णिम पर्यटक स्थल और ऐतिहासिक कथाओं से परिपूर्ण कृष्ण की द्वारिका नगरी एक बार जरूर जाएं

द्वारिका नगरी के स्वर्णिम पर्यटक स्थल की खूबसूरती और वहां की लोकप्रियता से अमूमन हर व्यक्ति परिचित है। यह प्राचीन नगरी पौराणिक कथाओं से लबालब भरी हुई है। आज भी यहां की कथाएं कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं। गोमती नदी के तट पर बसी यह देवनगरी पर्यटकों के तीर्थ स्थल का स्वर्ग माना जाता है। द्वारिका का इतिहास महाभारत काल से भी प्राचीन है। यह नगरी धार्मिक पर्यटन के साथ साथ प्राचीन ऐतिहासिक इमारतों में रूचि रखने वाले पर्यटकों के लिए बेहद ही खास है। 
 
नगरी इतिहास के दबे पन्नों में शुमार बेहद ही प्रेरणादायक और खूबसूरत है। यहां के इतिहास को जानने पर अक्सर लोग अचंभित हो जाते हैं। आस्था के प्रतीक मंदिर, ऐतिहासिक कथा, कला के श्रोत के संगम से द्वरिका नगरी परिपूर्ण है। यहां के सार्वजनिक स्थलों की सूची बड़ी लंबी है और इस सूची में किसी एक को वरीयता देना मुश्किल बात है परंतु सभी दार्शनिक मंदिरों का दर्शन करना एक यात्रा में संभव नहीं है। आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही दार्शनिक स्थलों के बारे में जिनका दर्शन मात्र से जीवन धन्य हो जाता है।

द्वारिकाधीश मंदिर 
द्वारिकाधीश मंदिर द्वारिका नगरी के सबसे लोकप्रिय धार्मिक स्थल है। इतिहास की कहानियों से यह मंदिर बेहद ही महत्वपूर्ण और आकर्षण से लबालब है। यहां आए श्रद्धालु इस मंदिर का प्रातः काल और संध्या काल दोनों समय दर्शन करते हैं। द्वारिकाधीश मंदिर में ध्वजारोहण बेहद ही खास है।
इस मंदिर में 52 गज लम्बा ध्वज 3 बार प्रातःकाल और 2 बार संध्या काल पूरे दिन में दिन में 5 बार बदला जाता है। प्रत्येक बार भिन्न-भिन्न भक्त परिवार पर यह ध्वज अर्पित करने का उत्तर दायित्व होता है। इससे यहां ध्वजजी कहते हैं। प्रतिदिन यहां उत्साहित परिवार धूमधाम से नाचते गाते खुशियां मनाते ध्वजारोहण करते हैं। ध्वजारोहण के बाद जब वायु की गति में जब ध्वज अपने वेग को धारण करता है, तब भक्तों की खुशियों का ठिकाना ही नहीं रहता है। चारों तरफ जय जयकार के नारे गूंजने लगते हैं, श्रद्धालु इस दृश्य को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

तुलाभार 
तुलाभार भगवान कृष्ण और रुक्मिणी के प्रेम का साक्ष्य प्रतीक है। तुलाभार को समझने के लिए आपको एक प्रचलित कथा जानना जरूरी है। एक बार नारद मुनि के उकसाने पर भगवान श्री कृष्ण की पत्नी सत्यभामा को दूसरी पत्नी रुक्मणी से ईर्ष्या का भाव पनपने लगा था। रुक्मणी के समक्ष कृष्ण से अपने प्रेम को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए सत्यभामा ने अपने अलंकृत आभूषणों के माध्यम श्री कृष्ण को तुलाभार में तौलने का कार्य प्रारंभ किया। परन्तु उनके संपूर्ण आभूषण कम पड़ने लगे। परिणामस्वरूप श्री कृष्ण का पलड़ा भारी पड़ गया।
 
नारद के समक्ष सत्यभामा अपनी लज्जा बचाने के लिए रुक्मिणी के शरण में गई। तदुपरांत रुक्मणी ने केवल तुलसी के एक पत्ते को प्रेम, श्रद्धा और विश्वास से तुला पर रख दिया और भगवान श्री कृष्ण का पलड़ा हल्का पड़ गया। अतः तुला भार इस कहानी के माध्यम से यह संदेश देता है कि भगवान को प्रेम व श्रद्धा से अर्पित कोई भी धन सर्वश्रेष्ठ है। यह विशाल तुलाभार गोमती नदी के तट पर स्थित है। तुलाभार के जरिए भक्त अपने वजन के बराबर अनाज दान करके अपने प्रेम और श्रद्धा को व्यक्त करते हैं।

रुक्मिणी मंदिर 
रुक्मणी भगवान श्री कृष्ण की धर्म पत्नी थी। रुक्मिणी द्वारिका व द्वारिकाधीश की रानी थी। द्वारिका नगरी में आने वाले हर श्रद्धालु द्वारा रुक्मिणी मंदिर का दर्शन किया जाता है। यह मंदिर प्रेम का प्रतीक वैभव के आकर्षण से मशहूर है। इस बेहद ही खास मंदिर का द्वारिका आने पर दर्शन करना शुभ माना जाता है। माना जाता है कि रुक्मणी मंदिर के बिना द्वारिका नगरी का दर्शन अधूरा है।

ऊंट की सवारी 
जहां द्वारिका नगरी एक तरफ सम्पूर्ण घाटों और तटों से भारी हुई है। तो वहीं दूसरी तरफ रेतीला दृष्टिगोचर है। यहां एक छोटे से भाग को बालू रूपी तट में परिवर्तित किया गया है। इन दिनों किनारों पर ऊंट की सवारी का आनंद उठाया जा सकता है। यह छोटे-छोटे बच्चे ऊंट की सवारी को बेहद पसंद करते हैं। नदी के रेतीले तट पर करीब पांच मीठे पानी के कुएं हैं। जहां की प्रचलित कथा है कि पांच ऋषि इन पांच नदियों को लेकर यहां आए थे। वर्तमान में यहां दो छोटे छोटे मंदिर है जो लक्ष्मी नारायण और अम्बा जी को समर्पित है। लक्ष्मी नारायण मंदिर में स्थित एक गुफा जहां पांचों पांडवों के पद चिन्हों अर्थात पांडव चरण अंकित है। यहां ऊंट की सवारी के साथ साथ विश्राम करने की भी व्यवस्था उपलब्ध है। सबसे खास बात यह है कि यहां दौड़ते हुए ऊंटों का नजारा देखा जा सकता है।

समुद्र तट से सूर्यास्त दर्शन 
सूर्यास्त के समय समुद्र में सूर्य की लाल कणिकाएं एक स्वर्णिम सड़क का निर्माण करती हैं। यह दृश्य मन को बेहद ही आकर्षित करता है। सूर्यास्त के नजारे का आनंद लेने के लिए यह सर्वोत्तम स्थल है। माना जाता है कि पुराने जमाने में यहां एक छोटा सा द्वीप रहा होगा और वहीं पर एक प्राचीन मंदिर स्थित है। समुद्री तट को निहारने के लिए आप समुद्र तट तक आसानी से पैदल चलकर जा सकते हैं। सूर्यास्त के इस मनोहर दृश्य देखने का कौतूहल हर व्यक्ति के मन में बसा रहता है। सूर्यास्त को निहारने के बाद नगरी की ओर देखने पर नगरी चट्टान पर दिखाई पड़ती है। समुद्र की ये लहरें इतनी प्रभावशाली होती है कि चट्टानों को काटकर गुफाएं बना देती हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि मानो समुद्र अपनी लहरों से द्वारिका के चट्टानों को धीरे-धीरे कुतर रहा है।

पंक्षी दर्शन 
द्वारिका के भीतर जल स्रोत स्थानों पर पक्षियों के भी दर्शन किए जा सकते हैं। यहां जलाशय के तटों पर कई पंक्षियों को स्वतंत्र रूप से विचरण करते हुए देखा जा सकता हैं। यहां की पक्षियां बड़ी संख्या में आती हैं और बहुत ही मनोहारी और आकर्षण होती हैं अमूमन यह पक्षी या झुंड में चलते हैं और इसी कारण इनका दर्शन करना बेहद ही मनोहारी होता है। पक्षियों के इस झुंड को देखकर व्यक्ति का मन प्रफुल्लित और आनंदित हो जाता है। यह नजारा आंखों के सुख प्रदान करने के साथ साथ मन को प्रसन्नता भी प्रदान करता है।