माता पार्वती से जुड़ा स्थान गौरी कुंड, आध्यात्म के साथ-साथ बर्फबारी के लिए प्रचलित है

आध्यात्म पर्यटन का एक खास पहलू है। आध्यात्मिक मंदिरों और दार्शनिक स्थलों के दर्शन करना हर श्रद्धालु की अपार श्रद्धा भक्ति को दर्शाता है। श्रद्धा और शक्ति से भरपूर गौरी कुंड (उत्तराखंड का यह स्थान) जहां हर वर्ष कई श्रद्धालु मत्था टेकने गौरी माता के दरबार में आते हैं। यह मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है। 

आध्यात्म और मोक्ष प्राप्त करने के बेहद खूबसूरत नमूने में शुमार यह स्थान असीम सुंदरता, मनमोहक नजारे और भक्ति से परिपूर्ण है। समुद्र तल से लगभग 2000 M की ऊंचाई पर स्थित यह स्थान लोगों के दिल में श्रद्धा और भक्ति के पावन ज्योति को सदैव जलाये रखता है। यहाँ हर व्यक्ति किसी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए श्रद्धा और भक्ति भाव से आता है। 

केदारनाथ मंदिर के लिए ट्रैक करने के लिए कुछ लोग इस स्थान को आधार शिविर भी मानते हैं। यहां स्थित प्रमुख आकर्षण के केंद्रों में निहित यहां के प्रसिद्ध पावन मंदिर और आकर्षण का दूसरा पर्याय गौरी झील भी स्थित है। गौरी मंदिर और गौरी झील ये दोनों स्थान यहां के प्रसिद्ध स्थान है। 

साल 2013 में आने वाला विनाशकारी बाढ़ से केदारनाथ धाम को बहुत क्षति पहुंची, दिल दहला देने वाली यह घटना भक्तों को दिल से आहत करती है। 
 
विनाशकारी बाढ़ के बाद 14 किलोमीटर की दूरी के रामबाग के माध्यम से गौरीकुंड से केदारनाथ तक का मूल ट्रेकिंग मार्क आक्रामक बाढ़ के कारण पूरी तरह से  धुल गया था। केदारनाथ धाम में घटित होने वाली हृदय विदारक घटना के बाद नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग के प्रयासों के कारण ट्रैक रूट के काफी सुधार हुआ है। यह स्थान अब बिलकुल सुरक्षित है।

गौरी कुंड का आकर्षण 
आध्यात्म का बेजोड़ नमूना वाला इस स्थान पर धार्मिक स्थल, होटल, और गेस्ट हाउस जैसे काफी सुरक्षित विकल्प यहां रुकने के लिए मिल जाते हैं। सबसे खास गतिविधि की बात करें तो यहां होने वाले ट्रैकिंग, यहां की लोकप्रिय गतिविधि है। यह पूरा क्षेत्र पवित्रता और अध्यात्म के सुगंध में सुगंधित है। अध्यात्म के पावन स्थानों के साथ साथ यहां पर्वतीय आकर्षण भी देखने को मिलता है। 

यहां आने वाले पर्यटक हिमालय की भव्यता और सुंदरता का अवलोकन नग्न आँखों से कर सकते हैं। बर्फ की सफेद चादर से ढकी यहां की चोटियां पर्यटकों के मन को मोह लेते हैं। मार्च से नवंबर तक महीने को छोड़ दिया जाए तो बाकी के हर महीनों में बर्फबारी और बर्फ की सफेद चादरों से ढकी हिमालय की खूबसूरती भुलाई नहीं जा सकती है। अध्यात्म और पर्वतीय आकर्षण का बेजोड़ नमूना वाला यह स्थान पर्यटकों के दिलों में कई वर्षों तक राज करता है।

गौरी कुंड मंदिर
आस्था के प्रतीक इस मंदिर में माता पार्वती की मूर्ति स्थापित है। श्रध्दा और भक्ति से यहां हर भक्त माता के इस मंदिर में मत्था टेकता हैं। यह मंदिर केदारनाथ यात्रा के बीच में पड़ती है, जिससे केदारनाथ की यात्रा करने वाले पर्यटक इस लुभावनी जगह पर रुकने का खूब प्रयास करते हैं।

गौरी कुंड झील 
गौरीकुंड झील को गौरीझील के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा इस झील के अनेकों नाम है। इसे लोग पार्वती सरोवर या कम्पास की झील के रूप में भी जानते हैं। इस स्थान को एक और मान्यता प्राप्त है, माना जाता है कि किसी स्थान पर माता पार्वती ने गणेश के प्राणों की प्रतिष्ठा की थी। 
 
यहां आने वाले हिन्दू पर्यटक इस झील को एक पवित्र स्थान मानते हैं। दर्शन करने के पूर्व पर्यटक इसी झील में स्नान करते हैं। एक दुःख की बात यह है कि 2013 में आए हृदय विदारक बाढ़ के बाद यह झील से अब एक छोटी जल की धारा में तब्दील हो चुका है।

गौरीकुंड का इतिहास 
गौरी कुंड के इतिहास की बात करें तो इस स्थान का नाम गौरी कुंड भगवान शिव की पत्नी पार्वती के नाम पर रखा गया है।लोकप्रिय किस्सों के अनुसार यह वही पावन भूमि है जहां माता  पार्वती ने तपस्या की थी। इस स्थान को तप और योग साधन वाली भूमि के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि माता पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए किसी स्थान पर अघोर तपस्या की थी।  

यह स्थान इसलिए भी बेहद खास हो जाता है क्योंकि व्यापक रूप से माना जाता है कि यहां भगवान शिव ने माता पार्वती से शादी करने के लिए स्वीकार कर लिया था।गौरीकुंड से नजदीक में स्थित स्थान त्रिरुगी नारायण में भगवान शिव और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था।

गौरीकुंड स्थान का भगवान गणेश से संबंध 
गौरीकुंड स्थान का संबंध भगवान गणेश से भी है। माना जाता है कि गणेश भगवान की सर कट जाने के बाद हाथी की सूंड की प्राप्ति की कहानी इसी स्थान से संबंधित है। इसके पीछे एक प्रचलित लोक कथा है माना जाता है कि एक बार माता पार्वती स्नान के दौरान भगवान गणेश को अपने रक्षक के रूप में द्वारपाल बनाकर खड़ा किया था।
 
माता पार्वती का सख्त आदेश था कि कोई भी भीतर न आने पाए, इसी दिन इसी बीच भगवान शिव को प्रवेश द्वार पर पहुंचने और अंदर जाने से भगवान गणेश ने रोक लिया था। 

इसी बीच भगवान शिव क्रोधित हो गए और वह अपने ही पुत्र यानी गणेश का सिर काट दिए थे। माता पार्वती को जब यह  पता चला तो वह भगवान से आग्रह की बच्चे को वापस ले लाया जाए, इसी बीच भगवान शिव ने एक भटकते हुए हाथी का सिर लाकर गणेश के सिर पर रख दिया था। प्रचलित लोक कथाओं के अनुसार यह सब यह घटना इसी स्थान से संबंधित है।

कब और कैसे जाएं गौरीकुंड?
गौरीकुंड जाने का सबसे खूबसूरत महीना मार्च से नवंबर के बीच का है, इस समय यहां के पहाड़ों पर बर्फ की सफेद चादर को निहारने के साथ साथ बर्फबारी का बखूबी से आनंद उठाया जा सकता है। इस वक्त प्रकृति प्रेमी यहां प्राकृतिक स्थलों का भी दर्शन कर सकते हैं। सबसे खास बात यह है कि इसी वक्त केदारनाथ धाम के कपाट भी खुलते हैं।

गौरीकुंड हवाई, रेल और सड़क दिनों मार्ग से पहुंचा जा सकता है। हवाई मार्ग का इस्तेमाल करने वाले लोगों के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून हवाई अड्डा है। गौरीकुंड से यह हवाई अड्डा 224 किलोमीटर दूर है। यहां से टैक्सी या कैप के जरिए गौरी कुंड स्थान पर जा सकता है।

सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन की बात करें तो वह ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है। यह रेलवे स्टेशन गौरीकुंड से मात्र 200 किलोमीटर की दूरी पर है। रेलवे स्टेशन से गौरीकुंड के लिए आसानी से बसें मिल जाते हैं। सड़क मार्ग के जरिए गौरी को स्वयं ही उत्तराखंड से अलग अलग तरीके से जुड़ा हुआ है।