मां गंगा की पूरी कहानी, जनिए क्या है गंगा नदी के पृथ्वी सफर की लोकप्रिय पौराणिक कथा

पतित पावनी माता गंगा पवित्रता और दिव्यता के लिए पूजनीय है। माता गंगा के कण कण अनेकों देवी देवता विराजमान है।गंगा नदी का स्वच्छंद बहता हुआ स्वच्छ और निर्मल जल अनेकों निर्जीव को जीवन प्रदान करता है। पतित पावनी माता गंगा का जल सिंचाई, स्नान, कल कारखानों, घरेलू कार्य और पीने के पानी के रूप में काम आता है।गंगा नदी कई पहलुओं से महत्वपूर्ण है। धार्मिक महत्ता से यह नदी पावन, निर्मल और दिव्य है।

2525 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली यह नदी अनेकों जीवन अपने जल के माध्यम से जीवित रखने में कारगरजीवन दायिनी के रूप में है। गंगा नदी दिव्य महत्वपूर्ण और उपयोगी है। नदी का निर्मल जल पाप नाशक के रूप में भी उपयोगी है। गंगा नदी को माता का दर्जा दिया जाता है।श्रद्धालुओं का अपार प्रेम और विश्वास ही है,जिसके कारण देश के तमाम हिस्सों में महाकुंभ में लाखों से भी अधिक की संख्या में श्रद्धालु पतित पावनी माता गंगा के निर्मल जल में डुबकी लगाने आते हैं।गंगा नदी भारत और बांग्लादेश में कुल मिलाकर 2525 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए उत्तराखंड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदर बन तक विशाल भू भाग को सिंचित करती है। 

गंगा नदी प्राकृतिक, आर्थिक और आस्था तीनों नजरिए से महत्वपूर्ण है। अपने सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर के विशाल क्षेत्र आपको अपने जल से सिंचित करती हैं। सबसे खास बात यह है कि सबसे गहरी नदी का गौरव मान दर्जा गंगा नदी को ही प्राप्त है। गंगा नदी की उपासना माँ और देवी से अक्सर की जाती है। गंगा नदी शांति का भी पर्याय है। अमूमन धार्मिक स्थल, योगासन,तप, यज्ञ, मंत्र जाप आदि गंगा नदी के ही किनारे किया जाता है। गंगा नदी का वर्णन साहित्य प्रेमी कई विदेशी भी प्रशंसा कर चुके हैं। नदी में कई बड़े जीव जंतु भी पाये जाते हैं जिनमें सर्प, मछलियां, मगरमच्छ आदि है। गंगा नदी का पशु, प्राणी, पक्षी, मनुष्य के जीवन में अनेकों भूमिका है।कृषि, पर्यटन, साहित्य खेल तथा उद्यानों के विकास के लिए भी यह नदी महत्वपूर्ण है।आर्थिक नजरिए से भी गंगा नदी बेहद खास है। गंगा नदी की परियोजनाएं भारत की बिजली पानी और कृषि से संबंधित जरूरतों को पूरा करती है।

गंगा नदी के जल को स्वच्छ और निर्मल कहा जाता है, इसके पीछे वैज्ञानिक मान्यता यह है कि नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, यह विषाणु वारियों व अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीवों को नष्ट कर देते हैं, यही कारण है कि गंगा नदी का जल कभी दूषित नहीं होता है।वर्तमान भारत सरकार गंगा नदी की स्वच्छता पर विशेष ध्यान दीया है। 2008 में गंगा नदी को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय नदी तथा हल्दिया और प्रयाग राज के बीच के मार्गों को राष्ट्रीय जल मार्ग घोषित किया गया है। गंगा नदी के तट पर कई ऐसे तीर्थ स्थल हैं जो पर्यटन की दृष्टि से भी बेहद खास है।

नदी का उद्गम 

गंगा नदी का उद्गम भागीरथी गोमुख से हुआ है। यह स्थान हिमालय के गढ़वाल में स्थित हैं। गंगा नदी के उद्गम स्थल की ऊंचाई 3812 मीटर है।गंगा नदी के उद्गम स्थल पर गंगा माता को समर्पित एक बेहतरीन मंदिर है। भागीरथी एक छोटे से गुफानुमा मुख पर अवतरित होती है,घाटी का मूल पश्चिमी ढलान की संतो पन्थ की चोटियों में है।गंगा नदी कई अन्य सहायक नदियां भी हैं। अलकनंदा की सहायक नदी धौली विष्णु गंगा और मंदाकिनी है। महाकुंभ लगने वाले स्थान प्रयाग में धौली गंगा और विष्णु गंगा का संगम होता है।रुद्रप्रयाग में अलकनंदा मंदाकिनी से मिलती हैं। 2000 किलोमीटर का संकरा पहाड़ी रास्ता तय करने के बाद गंगा नदी ऋषिकेश के रास्ते होते हुए प्रथम बार मैदानी इलाके को हरिद्वार में स्पर्श करती हैं।

गंगा यात्रा 

गंगा नदी भागीरथी से संगम तक कई इलाकों को सिंचित करती है। गंगा नदी के मैदानी यात्रा हरिद्वार से शुरू हो जाती है। 700 किलोमीटर की मैदानी यात्रा तय करते हुए गंगा नदी कई महत्वपूर्ण स्थानों के जरिये प्रयागराज पहुंचती है। गंगा नदी बिजनौर, गढ़ मुक्तेश्वर, फरुखाबाद, कन्नौज, बिठूर, कानपुर के रास्ते प्रयाग राज के पावन भूमि संगम तट पर यमुना नदी में विलीन हो जाती हैं। संगम क्षेत्र तीर्थों का राजा प्रयाग राज कहा जाता है।पवित्र नदी गंगा यमुना सरस्वती के मेल से बनी है, संगम जहां हजारों श्रद्धालु रोज अपने आस्था की डुबकी लगाने आते हैं।

संगम प्रयागराज का सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है जहां हर 6 साल पर अर्ध कुंभ तथा हर 12 वर्ष पर महाकुंभ लगता है, तथा हर वर्ष माघ मेला के रूप में कुंभ का आयोजन किया जाता है।संगम प्रयागराज का सबसे बड़ा पर्व है जिसकी तैयारियां 4-5 महीने पहले से होने लगती हैं, जिसमें करोड़ों सैलानियों अपने आस्था की डुबकी लगाने आते हैं।संगम नगरी में प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री समेत कई अन्य दिग्गज भी आस्था कि डुबकी लगाने आ चुके हैं। संगम मेले के दौरान भारत के अनेक राज्यों से व्यपारी भी अलग अलग क्षेत्र से अपने राज्य की विशिष्ट वस्तुओं को लेकर आते हैं जो बहुत ही मनोभावनी व आकर्षक होती है।संगम के दौरान विदेश पक्षी साइबेरियन पक्षियों का भी आवागमन होता है जो इसे बेहद खूबसूरत बना देती हैं।संगम मे नौका बिहार का भी अलग ही अंदाज है जिसमें लोग आंनद और आस्था दोनों का लुप्त उठाते हैं।

गंगा नदी की पवित्रता और निर्मलता की बखान  वाराणसी के गलियों में भी होती है। मोक्ष दायनी नगरी काशी में भला गंगा को कौन भूल सकता है। बनारस की सुबह और शाम यहां के घाटों के नाम होती है। वाराणसी में गंगा नदी एक वक्र लेती हैं यहां गंगा नदी को उत्तर वाहिनी कहा जाता है। वाराणसी से मिर्जापुर, पटना भागलपुर होते हुए गंगा नदी पाकुर पहुंच जाती हैं।गंगा नदी के इस यात्रा में कई सहायक नदियां भी मिल जाती हैं जिनमें सोन,गंडक,सरयू, कोसी आदि हैं। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के गिरिया स्थान से गंगा नदी दो भागों में विभाजित हो जाती है। दो शाखाओं में गंगा नदी के दो अलग अलग नाम भी हो जाते हैं भागीरथी और पद्मा। गिरिया से दक्षिण की ओर भागी रथ ही बहती है। दक्षिण पूर्व की ओर पद्मा नदी का बहाव होता है। गंगा का डेलटा भाग पश्चिम बंगाल में प्रवेश करते ही शुरू हो जाता है। बंगाल के हुगली नदी तक गंगा नदी को भागीरथी कहा जाता है।

गंगा नदी की प्रचलित पौराणिक कथाएं  

गंगा नदी को लेकर कई पौराणिक कथाएं उपलब्ध है। मिथकों के अनुसार गंगा का निर्माण ब्रह्मा ने विष्णु के पैर के पसीने के बिंद बूंदों से किया था तथा शिव जी अपनी जटाओं में गंगा को बांध के रखा था। यह उस समय की बात है जब शिव जी पृथ्वी पर आ रहे थे। अन्य कथा के अनुसार राजा सगर ने जादुई रूप से साठ हजार पुत्रों की प्राप्ति की थी। राजा ने एक दिन देव लोग पर विजय प्राप्त करने के लिए अश्ववमे में नामकधम नामक यज्ञ किया था।

यज्ञ के लिए आवश्यक घोड़े को इंद्र के द्वारा चुरा लिया गया था। राजा के यज्ञ में घोड़े की आवश्यकता थी। घोड़े को प्राप्त करने के लिए राजा अपने पुत्रों को घोड़े की खोज में भेज दिया अंततः घोड़ा पाताल लोक में मिला घोड़ा ऋषी कपिल मुनी तंके समीप बंधा था। राजा के पुत्र सच से अनिभिज्ञ उन्हें लगा कि ऋषि कपिल मुनि ने ही घोड़े को चुराया है। इस बात की पूर्ण जानकारी न होने के बावजूद भी मुनि का अपमान कर दिया था।उस समय ऋषि अपनी तपस्या में लीन थे वर्षों की तपस्या के बाद जब ऋषि ने अपनी आँखें खोली उसी वक्त राजा के सभी पुत्र जलकर भस्म हो गए। अंतिम संस्कार न होने के कारण राजा के पुत्रों की आत्माएं प्रेत बनकर भटकने लगी थी।

भागीरथ राजा दिलीप की दूसरी पत्नी के पुत्र थे। अनेक पीढ़ियों के बाद भी भस्म हुए राजा के पुत्रों का अंतिम संस्कार नहीं हुआ था। भागीरथ ने अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार किया। भागीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रण किया क्योंकि अंतिम संस्कार की राख को गंगा जल में प्रभावित करना था जिससे भटकती हुई आत्माएं स्वर्ग में स्थान प्राप्त कर सके। भागीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए ब्रह्मा की घोर तपस्या की ब्रह्मा प्रसन्न होकर गंगा पृथ्वी पर भेजने के लिए तैयार हो गए और साथ में पाताल लोक जाने का भी आदेश दे दिया था। सबसे बड़ा प्रश्न यह उठा कि गंगा इतनी वेग से पृथ्वी पर कैसे अवतरित हो सकेगी क्योंकि गंगा का वेग पृथ्वी सहन नहीं कर सकती थी। इस जटिल समस्या के समाधान के लिए भागीरथ ने भगवान शिव से प्रार्थना की उन्होंने कहा अपनी खुली जटाओं से गंगा को रोक कर सिर्फ एक लट पृथ्वी की ओर खोल दें। 

भगवान शिव के ऐसा करने पर ही पृथ्वी पर गंगा की अविरल धारा प्रभावित हुई थी। धारा का प्रवाह भागीरथ के पीछे पीछे संगम तक पहुंच गई, जहां पर राजा के पुत्रों का उद्धार हुआ था।गंगा के पावन का महत्व शिव के स्पर्श करने से और बढ़ गया था। पुराणों की मानें तो स्वर्ग में गंगा नदी को मंदाकिनी और पाताल में भागीरथी कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार गंगा का विवाह राजा शांतनु से हुआ था और इन्ही कथाओं में शांतनु गंगा के 7 पुत्रो का भी उल्लेख किया गया है।