सदियों पुराना है भारत में इत्र का इतिहास, ग्रंथों में भी मिलता है इसका उल्लेख

भारत में इत्र यानि परफ्यूम बनाने की परंपरा आज से नहीं बल्कि कई सालों से चली आ रही है। आज भी दुनियाभर के सभी देशों में से भारत में ही इत्र का निर्माण सबसे ज्यादा किया जाता है। लेकिन समय के साथ-साथ इत्र बनाने की प्रक्रिया में भी बदलाव आया है। जहाँ पहले इत्र बनाने के लिए प्राकृतिक चीज़ों और फूलों का इस्तेमाल किया जाता था, वहीं आज के समय में इत्र बनाने के लिए केमिकल का प्रयोग किया जाता है।      

भारत में सौंदर्य प्रसाधन और इत्र बनाने के विज्ञान और प्रौद्योगिकी को गंधास्त्र के नाम से जाना जाता है। वहीं, सौंदर्य प्रसाधन और इत्र तैयार करने की व्यावहारिक कला और अनुप्रयोग को गंधायुक्ति के रूप में जाना जाता है। इस विषय के लिए गंगाधरा ग्रंथ की गंधसारा और गंधवदा दो महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं। इन दोनों की ग्रंथों की रचना अज्ञात है। गांधवदा की मराठी में विस्तृत टिप्पणी है।

ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में भी इत्र के उपयोग का उल्लेख मिलता है। भारतीय भाषाओं में ऐसे कई श्लोक हैं जो इत्र, गंध और भस्म  से शरीर, मन और आत्मा को होने वाले लाभों और प्रसन्ना के बारे में बताते हैं। यही कारण है कि पंचतंत्र के लेखक विष्णु शर्मा ने भी इत्र का बखान करते हुए इसे सोने से ऊपर रखा है।

इन ग्रंथों में इस तथ्य का भी उल्लेख मिलता है कि सौंदर्य प्रसाधन और इत्र पूरी तरह से जैविक स्रोतों से निर्मित होते थे। इत्र बनाने के लिए पौधे, पत्ते, खनिज, छाल, झाड़ियाँ, कस्तूरी, एम्बरग्रीस आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह से इत्र बनाने की कला और विज्ञान का एक अध्ययन भी आयुर्वेद के अध्ययन के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है क्योंकि सैकड़ों कार्बनिक सुगंधित अवयवों का चिकित्सीय मूल्य भी है।
गंगाधारा इत्र और विभिन्न प्रकार के सुगंधित पानी, सुगंधित तेल, अगरबत्ती, और पाउडर के निर्माण के लिए तकनीकी प्रक्रियाओं पर विस्तृत विवरण देती है। गंगाधारा में सुगंधित उत्पादों की वास्तविक तैयारी को छह प्रक्रियाओं (भवन, पचाना, बोधा, वेधा, धूप और वासना) में वर्गीकृत किया गया है। भारत में पारंपरिक इत्र आज भी अपने सुगंधित उत्पादों के निर्माण के लिए इनमें से कई तरीकों और तकनीकों का उपयोग करते हैं। गंगाधारा श्रेणियों के रूप में सुगंधित सामग्रियों का आठ गुना वर्गीकरण प्रदान करती है, जो इस प्रकार है -
पत्तियाँ: तुलसी (तुलसी), आदि।
फूल: केसर, चमेली, सुगंधपशु, आदि
फल: काली मिर्च, जायफल, इलायची आदि
छाल: कपूर का पेड़, लौंग का पेड़, आदि
जड़ें: नटग्रास, पावोनिया ओडोराटा आदि
जंगल: चंदन, देवदार, आदि
पौधों से गंध का निर्वहन: कपूर, आदि
कार्बनिक तत्व: कस्तूरी, शहद, मक्खन, घी, आदि
आज भी पारंपरिक इत्र बनाने के लिए इन सभी सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाता है।